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- जथा अनेक बेष धरि
- जथा जोगु करि बिनय प्रनामा
- जथा दरिद्र बिबुधतरु पाई
- जथा पंख बिनु खग अति दीना
- जथा मत्त गज जूथ
- जथा सुअंजन अंजि
- जथाजोग सनमानि प्रभु
- जथाजोग सेनापति कीन्हे
- जदपि कबित रस एकउ नाहीं
- जदपि कही कपि अति हित बानी
- जदपि कीन्ह एहिं दारुन पापा
- जदपि जोषिता नहिं अधिकारी
- जदपि नाथ बहु अवगुन मोरें
- जदपि प्रथम दुख पावइ
- जदपि बिरज ब्यापक अबिनासी
- जदपि मित्र प्रभु पितु गुर गेहा
- जदपि सखा तव इच्छा नहीं
- जदयू
- जदि का माइ जनमियाँ -कबीर
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- जदों ज़ाहिर होए नूर होरी -बुल्ले शाह
- जद्यपि अवध सदैव सुहावनि
- जद्यपि गृहँ सेवक सेवकिनी
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- जद्यपि जनमु कुमातु
- जद्यपि नीति निपुन नरनाहू
- जद्यपि प्रगट न कहेउ भवानी
- जद्यपि प्रभु के नाम अनेका
- जद्यपि प्रभु जानत सब बाता
- जद्यपि भगिनी कीन्हि कुरूपा
- जद्यपि मनुज दनुज कुल घालक
- जद्यपि मैं अनभल अपराधी
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- जद्यपि सब बैकुंठ बखाना
- जद्यपि सम नहिं राग न रोषू
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