कुटुंब

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कुटुंब रक्त-संबंधियों का समूह को कहा जाता है। सामान्य बोलचाल में इस शब्द के प्रयोग से यह स्पष्ट नहीं हो पाता कि इस समूह के सदस्य कौन कहे जायेंगे। मानवशास्त्री और समाजशास्त्री कुटुंब के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए अनेक कौटुंबिक समूहों[1] का जिक्र करते हैं। उनके अनुसार वे सभी समूह कौटुंबिक समूह हैं जिनके सदस्यों में कौटुंबिक संबंध पाए जाते हैं। कौटुंबिक समूहों में सबसे छोटा और कुटुंब का केंद्रीय समूह परिवार है। परिवार के अलावा वंश, कुल, बंधु, बांधव, सपिंड आदि अन्य कौटुंबिक समूह हैं।

परिवार तथा अन्य कौटुंबिक समूहों में पहला भेद यह है कि परिवार में रक्तसंबंधियों के अलावा वैवाहिक संबंध वाले व्यक्ति भी पाए जाते हैं। उदाहरणत:- माता, पिता और बच्चों वाले परिवार में, माता, पिता और बच्चों के बीच में रक्तसंबंध है तथा पति पत्नी में वैवाहिक संबंध है। पर अन्य कौटुंबिक समूहों में केवल रक्तसंबंधी सदस्य होते हैं। इसके अलावा एक परिवारों के सदस्यों का एक ही आवास होता है, जब कि अन्य कौटुंबिक समूहों के सदस्यों के लिए एक सामान्य आवास आवश्यक नहीं है। परिवार का स्वरूप आवास के नियमों से प्रभावित होता है, जैसे यदि एक समाज में पत्नी-पति के घर पर रहने के बजाय अपनी माँ के घर ही रहती हो, तो ऐसे परिवार को हम मातृस्थानीय परिवार (मेट्रिलोकल फ़ेमिली) कहते हैं। इसके विपरीत अन्य कौटुंबिक समूह वंशानुक्रम (डिसेंट) के नियमों पर आधारित है। एक व्यक्ति के लिए कुटुंब के व्यक्तियों को कामकाज के समय निमंत्रित करना या उनके यहाँ निमंत्रण में जाना, उनसे सहायता लेना या उनको सहायता देना, कौटुंबिक संबंधों को निभाने के लिए अनिवार्य हैं।

कौटुंबिक संबंधों को निभाने के पहले यह जानना आवश्यक है कि कौन व्यक्ति इस समूह के सदस्य है। जो व्यक्ति रक्तसंबंधी हैं और बच्चे के जन्म के अवसर से कौटुंबिक संबंधों को निभा रहे हैं, व्यावहारिक रूप में वे ही कुटुंबी हैं। वैसे, जितने भी रक्तसंबंधी है वे सभी किसी न किसी कौटुंबिक समूह के सदस्य हैं।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. किन ग्रपु
  2. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 3 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 57 |

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