आगे माई, जोगिया मोर जगत् सुखदायक, दुःख ककरो नहिं देल दुःख ककरो नहिं देल महादेव, दुःख ककरो नहिं देल ! एही जोगिया के भाँग भुलैलक, धतुर खोआई धन लेल ! आगे माई, कार्तिक गणपति दुई जन बालक, जन भरी के नहिं जान ! तिनक अभरन किछओ न टिकइन, रतियक सन नहिं कान ! आगे माई, सोना रूपा अनका सूत अभरन, अपने रुद्रक माल ! अपना मँगलो किछ नै जुरलनी, अनका लै जंजाल ! आगे माई, छन में हेरथी कोटिधन बकसथी, वाहि देवा नहिं थोर ! भनहिं विद्यापति सुनू हे मनाइनि, इहो थिका दिगम्बर मोर !