नरसिंह वर्मन प्रथम: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
 
(One intermediate revision by one other user not shown)
Line 1: Line 1:
*नरसिंह वर्मन प्रथम (630-668ई.) अपने पिता [[महेन्द्र वर्मन प्रथम]] की मुत्यु के बाद गद्दी पर बैठा।
'''नरसिंह वर्मन प्रथम''' (630-668ई.) अपने पिता [[महेन्द्र वर्मन प्रथम]] की मुत्यु के बाद गद्दी पर बैठा।
*वह अपने अभिलेखों में 'वातापीकोड' के रूप में उद्धृत है। वह [[पल्लव वंश]] का सबसे प्रतापी और शक्तिशाली राजा था।
*वह अपने अभिलेखों में 'वातापीकोड' के रूप में उद्धृत है। वह [[पल्लव वंश]] का सबसे प्रतापी और शक्तिशाली राजा था।
*असाधारण धैर्य एवं पराक्रम के कारण उसे 'महामल्ल' भी कहा गया है।
*असाधारण धैर्य एवं पराक्रम के कारण उसे 'महामल्ल' भी कहा गया है।
Line 16: Line 16:
*इसके समय में सिंह शीर्षक स्तम्भ की नई शैली का विकास हुआ, जिसे इसके नाम पर '''मामल्य शैली''' का नाम दिया गया।
*इसके समय में सिंह शीर्षक स्तम्भ की नई शैली का विकास हुआ, जिसे इसके नाम पर '''मामल्य शैली''' का नाम दिया गया।
*महाबलीपुरम के सप्तरथ इसी के शासनकाल में बनाए गए थे। इनका नामकरण [[पाण्डव]], [[द्रौपदी]] तथा [[गणेश]] के नाम पर किया गया था।
*महाबलीपुरम के सप्तरथ इसी के शासनकाल में बनाए गए थे। इनका नामकरण [[पाण्डव]], [[द्रौपदी]] तथा [[गणेश]] के नाम पर किया गया था।
*प्रतापी चालुक्यों को परास्त कर उसकी राजधानी [[बादामी कर्नाटक|बादामी]] को जीत लेना, नरसिंह वर्मन प्रथम के जीवन की गौरवमयी घटना है। इसीलिए उसने 'वातापीकोड' का विरुद भी अपने नाम के साथ जोड़ लिया।  
*प्रतापी चालुक्यों को परास्त कर उसकी राजधानी [[बादामी]] को जीत लेना, नरसिंह वर्मन प्रथम के जीवन की गौरवमयी घटना है। इसीलिए उसने 'वातापीकोड' का विरुद भी अपने नाम के साथ जोड़ लिया।  
   
   
{{प्रचार}}
{{प्रचार}}

Latest revision as of 05:40, 14 April 2012

नरसिंह वर्मन प्रथम (630-668ई.) अपने पिता महेन्द्र वर्मन प्रथम की मुत्यु के बाद गद्दी पर बैठा।

  • वह अपने अभिलेखों में 'वातापीकोड' के रूप में उद्धृत है। वह पल्लव वंश का सबसे प्रतापी और शक्तिशाली राजा था।
  • असाधारण धैर्य एवं पराक्रम के कारण उसे 'महामल्ल' भी कहा गया है।
  • 'कुर्रम दान पत्र' अभिलेख से ज्ञात होता है कि, नरसिंह वर्मन प्रथम ने चालुक्य नरेश पुलकेशी द्वितीय को परिमल, मणिमंगलाई एवं शूरमार के युद्धों में परास्त किया था।
  • नरसिंह वर्मन प्रथम की सेना के साथ युद्ध करते हुए ही पुलकेशी द्वितीय ने वीरगति प्राप्त की थी।
  • नरसिंह वर्मन ने पुलकेशी द्वितीय की पीठ पर 'विजय' शब्द अंकित करवाया था।
  • इस विजय का उल्लेख बादामी में मल्लिकार्जुन मंदिर के पीछे एक पाषाण पर उत्कीर्ण है, जिसे उसके सेनापति शिरुतोण्ड ने उत्कीर्ण करवाया था।
  • नरसिंह वर्मन प्रथम के काशाक्कुटि ताम्रपत्र अभिलेख एवं महावंश के उल्लेख से उसकी लंका विजय प्रमाणित होती है।
  • राजपद के अन्यतम उम्मीदवार मानवम्म ने नरसिंह वर्मन की शरण ली, और उसकी सहायता के लिए पल्लवराज ने दो बार नौसेना द्वारा लंका पर आक्रमण किया।
  • इसी कारण इस लेख में नरसिंह वर्मा प्रथम की तुलना लंका विजय राम से की गई।
  • महावंश के 47वें अध्याय के अनुसार लंका का राजकुमार मारवर्मन भारतीय राजा नरसिंह वर्मन के दरबार में रहता था।
  • कांची के निकट एक बन्दरगाह वाला नगर महामल्लपुरम (महाबलीपुरम) बसाने का श्रेय भी नरसिंह वर्मन प्रथम को दिया जाता है।
  • उसके शासन काल में चीनी यात्री ह्वेनसांग कांची गया था।
  • इस प्रसिद्ध चीनी यात्री के अनुसार कांची में 100 संघाराम थे, जिनमें 1000 भिक्षु निवास करते थे।
  • बौद्ध विहारों के अतिरिक्त अन्य धर्मों के भी 80 मन्दिर और बहुत से चैत्य वहाँ पर थे।
  • इसके समय में सिंह शीर्षक स्तम्भ की नई शैली का विकास हुआ, जिसे इसके नाम पर मामल्य शैली का नाम दिया गया।
  • महाबलीपुरम के सप्तरथ इसी के शासनकाल में बनाए गए थे। इनका नामकरण पाण्डव, द्रौपदी तथा गणेश के नाम पर किया गया था।
  • प्रतापी चालुक्यों को परास्त कर उसकी राजधानी बादामी को जीत लेना, नरसिंह वर्मन प्रथम के जीवन की गौरवमयी घटना है। इसीलिए उसने 'वातापीकोड' का विरुद भी अपने नाम के साथ जोड़ लिया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

संबंधित लेख