गुरुदास बनर्जी: Difference between revisions
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*गुरुदास बनर्जी सनातन धर्म के मानने वाले व्यक्ति थे। | *गुरुदास बनर्जी सनातन धर्म के मानने वाले व्यक्ति थे। | ||
*[[1902]] ई. में कर्ज़न ने सर [[टॉमस रो]] की अध्यक्षता में एक विश्वविद्यालय आयोग की स्थापना की। इस आयोग में [[सैयद हुसैन बिलग्रामी]] एवं जस्टिस गुरुदास बनर्जी सदस्य के रूप में शामिल थे। इस आयोग का उद्देश्य विश्वविद्यालयों की स्थिति का अनुमान लगाना एवं उनके संविधान तथा कार्यक्षमता के बारे में सुझाव देना था। | |||
*[[हिन्दू धर्म]] पर उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं हैं, जिनमें मुख्य हैं-[[बांग्ला भाषा|बंगला]] में 'ज्ञान ओ कर्म' तथा [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] में 'फ़्यू थाट्स ओन एजुकेशन'। | *[[हिन्दू धर्म]] पर उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं हैं, जिनमें मुख्य हैं-[[बांग्ला भाषा|बंगला]] में 'ज्ञान ओ कर्म' तथा [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] में 'फ़्यू थाट्स ओन एजुकेशन'। | ||
Latest revision as of 17:05, 11 February 2013
गुरुदास बनर्जी भारत के एक प्रमुख जाने-माने शिक्षाशास्त्री थे। इन्हें 1888 ई. में कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) उच्च न्यायालय का अवर न्यायधीश नियुक्त किया गया था।
- गुरुदास बनर्जी का जन्म 1844 ई. में कलकत्ता में तथा मृत्यु 1918 ई. में हुई थी।
- इन्होंने अपना जीवन बंगाल के एक कॉलेज में प्रोफ़ेसर के रूप में आरम्भ किया, किन्तु शीघ्र ही वह वकालत करने लगे और 1876 ई. में डी. एल. की डिग्री प्राप्त कर ली।
- 1888 ई. में उन्हें कलकत्ता हाईकोर्ट का न्यायाधीश बनाया गया जहाँ से वे 1904 ई. में सेवानिवृत्त हुए।
- शिक्षा के विकास और प्रसार में उनकी तीव्र रुचि थी और कलकत्ता विश्वविद्यालय के दो कार्यवधि तक वे वाइस चांसलर रहे।
- गुरुदास बनर्जी सनातन धर्म के मानने वाले व्यक्ति थे।
- 1902 ई. में कर्ज़न ने सर टॉमस रो की अध्यक्षता में एक विश्वविद्यालय आयोग की स्थापना की। इस आयोग में सैयद हुसैन बिलग्रामी एवं जस्टिस गुरुदास बनर्जी सदस्य के रूप में शामिल थे। इस आयोग का उद्देश्य विश्वविद्यालयों की स्थिति का अनुमान लगाना एवं उनके संविधान तथा कार्यक्षमता के बारे में सुझाव देना था।
- हिन्दू धर्म पर उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं हैं, जिनमें मुख्य हैं-बंगला में 'ज्ञान ओ कर्म' तथा अंग्रेज़ी में 'फ़्यू थाट्स ओन एजुकेशन'।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 268 |