नीहार -महादेवी वर्मा: Difference between revisions

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नीहार की विषयवस्तु के सम्बंध में स्वयं महादेवी वर्मा का कथन उल्लेखनीय है- "नीहार के रचना काल में मेरी अनुभूतियों में वैसी ही कौतूहल मिश्रित वेदना उमड़ आती थी, जैसे बालक के मन में दूर दिखायी देने वाली अप्राप्य सुनहली उषा और स्पर्श से दूर सजल मेघ के प्रथम दर्शन से उत्पन्न हो जाती है।" इन गीतों में कौतूहल मिश्रित वेदना की अभिव्यक्ति है।
नीहार की विषयवस्तु के सम्बंध में स्वयं महादेवी वर्मा का कथन उल्लेखनीय है- "नीहार के रचना काल में मेरी अनुभूतियों में वैसी ही कौतूहल मिश्रित वेदना उमड़ आती थी, जैसे बालक के मन में दूर दिखायी देने वाली अप्राप्य सुनहली उषा और स्पर्श से दूर सजल मेघ के प्रथम दर्शन से उत्पन्न हो जाती है।" इन गीतों में कौतूहल मिश्रित वेदना की अभिव्यक्ति है। [[मीरा]] ने जिस प्रकार उस परमपुरुष की उपासना सगुण रूप में की थी, उसी प्रकार महादेवीजी ने अपनी भावनाओं में उसकी आराधना निर्गुण रूप में की है। उसी एक का स्मरण, चिन्तन एवं उसके तादात्म्य होने की उत्कंठा महादेवीजी की कविताओं में उपादान है। उनकी ‘नीहार’ में हम उपासना-भाव का परिचय विशेष रूप से पाते है।


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Latest revision as of 04:33, 2 April 2013

नीहार -महादेवी वर्मा
कवि महादेवी वर्मा
मूल शीर्षक नीहार
प्रकाशक गाँधी हिन्दी पुस्तक भण्डार, प्रयाग
प्रकाशन तिथि 1930
देश भारत
भाषा हिंदी
शैली काव्य संग्रह

नीहार महादेवी वर्मा का पहला कविता-संग्रह है। इसका प्रथम संस्करण सन् 1930 ई. में गाँधी हिन्दी पुस्तक भण्डार, प्रयाग द्वारा प्रकाशित हुआ। इसकी भूमिका अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' ने लिखी थी। इस संग्रह में महादेवी वर्मा की 1923 ई. से लेकर 1929 ई. तक के बीच लिखी कुल 47 कविताएँ संग्रहीत हैं।[1]

विषयवस्तु

नीहार की विषयवस्तु के सम्बंध में स्वयं महादेवी वर्मा का कथन उल्लेखनीय है- "नीहार के रचना काल में मेरी अनुभूतियों में वैसी ही कौतूहल मिश्रित वेदना उमड़ आती थी, जैसे बालक के मन में दूर दिखायी देने वाली अप्राप्य सुनहली उषा और स्पर्श से दूर सजल मेघ के प्रथम दर्शन से उत्पन्न हो जाती है।" इन गीतों में कौतूहल मिश्रित वेदना की अभिव्यक्ति है। मीरा ने जिस प्रकार उस परमपुरुष की उपासना सगुण रूप में की थी, उसी प्रकार महादेवीजी ने अपनी भावनाओं में उसकी आराधना निर्गुण रूप में की है। उसी एक का स्मरण, चिन्तन एवं उसके तादात्म्य होने की उत्कंठा महादेवीजी की कविताओं में उपादान है। उनकी ‘नीहार’ में हम उपासना-भाव का परिचय विशेष रूप से पाते है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय साहित्य कोश-2 (हिंदी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: ज्ञानमण्डल लिमिटेड वाराणसी, 307।

बाहरी कड़ियाँ

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