छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-5: Difference between revisions

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*[[सूर्य देवता|सूर्य]] ही उद्गीथ है, प्रणव है। यह सतत गतिशील रहकर 'ॐ' का उच्चारण करता रहता है।
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*इसमें खंड में आगे कहा गया है कि मुख्य प्राण के रूप में ही उद्गीथ की उपासना करनी चाहिए।
 
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Latest revision as of 12:53, 12 August 2016

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-5
विवरण 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है।
अध्याय प्रथम
कुल खण्ड 13 (तेरह)
सम्बंधित वेद सामवेद
संबंधित लेख उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य
अन्य जानकारी सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं।

छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय प्रथम का यह पांचवाँ खण्ड है। इस खण्ड में 'उद्गीथ' और 'प्रणव' को एक रूप ही माना गया है।

  • सूर्य ही उद्गीथ है, प्रणव है। यह सतत गतिशील रहकर 'ॐ' का उच्चारण करता रहता है।
  • इसमें खंड में आगे कहा गया है कि मुख्य प्राण के रूप में ही उद्गीथ की उपासना करनी चाहिए।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1

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