रागदरबारी: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
(''''रागदरबारी''' हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार श्री...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
'''रागदरबारी''' [[हिन्दी]] के प्रसिद्ध साहित्यकार [[श्रीलाल शुक्ल]] द्वारा रचित व्यंग्य रचना है। इस रचना के लिये श्रीलाल शुक्ल जी को [[1970]] में '[[साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी|साहित्य अकादमी पुरस्कार]]' से सम्मानित किया गया। | {{सूचना बक्सा पुस्तक | ||
|चित्र=Raag-Darbari.jpg | |||
|चित्र का नाम=रागदरबारी का आवरण पृष्ठ | |||
|लेखक= [[श्रीलाल शुक्ल]] | |||
|कवि= | |||
|मूल_शीर्षक = 'रागदरबारी' | |||
|मुख्य पात्र = | |||
|कथानक = | |||
|अनुवादक = | |||
|संपादक = | |||
|प्रकाशक = | |||
|प्रकाशन_तिथि = [[1938]] | |||
|भाषा = [[हिन्दी]] | |||
|देश = [[भारत]] | |||
|विषय = | |||
|शैली =व्यंग्य | |||
|मुखपृष्ठ_रचना = | |||
|विधा = | |||
|प्रकार = | |||
|पृष्ठ = 330 | |||
|ISBN =81-267-0478-0 | |||
|भाग = | |||
|शीर्षक 1= | |||
|पाठ 1= | |||
|शीर्षक 2= | |||
|पाठ 2= | |||
|शीर्षक 3= | |||
|पाठ 3= | |||
|विशेष =[[1968]] में 'रागदरबारी' का प्रकाशन हुआ और [[1969]] में इस पर [[श्रीलाल शुक्ल]] को '[[साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी|साहित्य अकादमी पुरस्कार]]' मिला। | |||
|टिप्पणियाँ = | |||
}} | |||
'''रागदरबारी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Raagdarbari'') [[हिन्दी]] के प्रसिद्ध साहित्यकार [[श्रीलाल शुक्ल]] द्वारा रचित व्यंग्य रचना है। इस रचना के लिये श्रीलाल शुक्ल जी को [[1970]] में '[[साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी|साहित्य अकादमी पुरस्कार]]' से सम्मानित किया गया। | |||
*यह ऐसा [[उपन्यास]] है, जो [[गाँव]] की [[कथा]] के माध्यम से आधुनिक भारतीय जीवन की मूल्यहीनता को सहजता और निर्ममता से अनावृत करता है। शुरू से अन्त तक इतने निस्संग और सोद्देश्य व्यंग्य के साथ लिखा गया हिंदी का शायद यह पहला वृहत् उपन्यास है। | *यह ऐसा [[उपन्यास]] है, जो [[गाँव]] की [[कथा]] के माध्यम से आधुनिक भारतीय जीवन की मूल्यहीनता को सहजता और निर्ममता से अनावृत करता है। शुरू से अन्त तक इतने निस्संग और सोद्देश्य व्यंग्य के साथ लिखा गया हिंदी का शायद यह पहला वृहत् उपन्यास है। | ||
Line 6: | Line 37: | ||
*राग दरबारी व्यंग्य-कथा नहीं है। इसमें [[श्रीलाल शुक्ल|श्रीलाल शुक्ल जी]] ने स्वतंत्रता के बाद के [[भारत]] के ग्रामीण जीवन की मूल्यहीनता को परत-दर-परत उघाड़ कर रख दिया है। | *राग दरबारी व्यंग्य-कथा नहीं है। इसमें [[श्रीलाल शुक्ल|श्रीलाल शुक्ल जी]] ने स्वतंत्रता के बाद के [[भारत]] के ग्रामीण जीवन की मूल्यहीनता को परत-दर-परत उघाड़ कर रख दिया है। | ||
*उपन्यास की कथा भूमि एक बड़े नगर से कुछ दूर बसे गाँव शिवपालगंज की है, जहाँ की जिन्दगी प्रगति और विकास के समस्त नारों के बावजूद, निहित स्वार्थों और अनेक अवांछनीय तत्वों के आघातों के सामने घिसट रही है। शिवपालगंज की पंचायत, कॉलेज की प्रबन्ध समिति और कोआपरेटिव सोसाइटी के सूत्रधार वैद्यजी साक्षात वह राजनीतिक संस्कृति हैं, जो प्रजातन्त्र और लोकहित के नाम पर हमारे चारों ओर फल-फूल रही हैं। | *उपन्यास की कथा भूमि एक बड़े नगर से कुछ दूर बसे गाँव शिवपालगंज की है, जहाँ की जिन्दगी प्रगति और विकास के समस्त नारों के बावजूद, निहित स्वार्थों और अनेक अवांछनीय तत्वों के आघातों के सामने घिसट रही है। शिवपालगंज की पंचायत, कॉलेज की प्रबन्ध समिति और कोआपरेटिव सोसाइटी के सूत्रधार वैद्यजी साक्षात वह राजनीतिक संस्कृति हैं, जो प्रजातन्त्र और लोकहित के नाम पर हमारे चारों ओर फल-फूल रही हैं। | ||
{|style="width:100%" | |||
|- | |||
| | |||
|} | |||
Latest revision as of 12:09, 15 November 2016
रागदरबारी
| |
लेखक | श्रीलाल शुक्ल |
मूल शीर्षक | 'रागदरबारी' |
प्रकाशन तिथि | 1938 |
ISBN | 81-267-0478-0 |
देश | भारत |
पृष्ठ: | 330 |
भाषा | हिन्दी |
शैली | व्यंग्य |
विशेष | 1968 में 'रागदरबारी' का प्रकाशन हुआ और 1969 में इस पर श्रीलाल शुक्ल को 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' मिला। |
रागदरबारी (अंग्रेज़ी: Raagdarbari) हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल द्वारा रचित व्यंग्य रचना है। इस रचना के लिये श्रीलाल शुक्ल जी को 1970 में 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।
- यह ऐसा उपन्यास है, जो गाँव की कथा के माध्यम से आधुनिक भारतीय जीवन की मूल्यहीनता को सहजता और निर्ममता से अनावृत करता है। शुरू से अन्त तक इतने निस्संग और सोद्देश्य व्यंग्य के साथ लिखा गया हिंदी का शायद यह पहला वृहत् उपन्यास है।
- उपन्यास ‘राग दरबारी’ का लेखन 1964 के अन्त में शुरू हुआ। अपने अन्तिम रूप में 1967 में यह समाप्त हुआ।
- 1968 में इसका प्रकाशन हुआ और 1969 में इस पर श्रीलाल शुक्ल को 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' मिला। 1986 में एक दूरदर्शन-धारावाहिक के रूप में इसे लाखों दर्शकों की सराहना प्राप्त हुई।
- राग दरबारी व्यंग्य-कथा नहीं है। इसमें श्रीलाल शुक्ल जी ने स्वतंत्रता के बाद के भारत के ग्रामीण जीवन की मूल्यहीनता को परत-दर-परत उघाड़ कर रख दिया है।
- उपन्यास की कथा भूमि एक बड़े नगर से कुछ दूर बसे गाँव शिवपालगंज की है, जहाँ की जिन्दगी प्रगति और विकास के समस्त नारों के बावजूद, निहित स्वार्थों और अनेक अवांछनीय तत्वों के आघातों के सामने घिसट रही है। शिवपालगंज की पंचायत, कॉलेज की प्रबन्ध समिति और कोआपरेटिव सोसाइटी के सूत्रधार वैद्यजी साक्षात वह राजनीतिक संस्कृति हैं, जो प्रजातन्त्र और लोकहित के नाम पर हमारे चारों ओर फल-फूल रही हैं।
|
|
|
|
|