वैदेही वनवास सप्तदश सर्ग: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
कात्या सिंह (talk | contribs) ('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Ayodhya-Singh-Upad...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - " दुख " to " दु:ख ") |
||
Line 87: | Line 87: | ||
उनमें भरी हुई दिखलाती थी व्यथा॥ | उनमें भरी हुई दिखलाती थी व्यथा॥ | ||
खग-कलरव में कलरवता मिलती न थी। | खग-कलरव में कलरवता मिलती न थी। | ||
बोल-बोल वे कहते थे | बोल-बोल वे कहते थे दु:ख की कथा॥13॥ | ||
लतिकायें थीं बड़ी-बलायें बन गईं। | लतिकायें थीं बड़ी-बलायें बन गईं। | ||
Line 139: | Line 139: | ||
पर दुख-कातरता है प्यारी-सहचरी॥23॥ | पर दुख-कातरता है प्यारी-सहचरी॥23॥ | ||
बड़े-बड़े | बड़े-बड़े दु:ख के अवसर आये तदपि। | ||
कभी नहीं दिखलाई वे मुझको दुखी॥ | कभी नहीं दिखलाई वे मुझको दुखी॥ | ||
मेरा मुख-अवलोके दिन था बीतता। | मेरा मुख-अवलोके दिन था बीतता। | ||
Line 365: | Line 365: | ||
कभी दिखाते वे ऐसे कुछ भाव थे। | कभी दिखाते वे ऐसे कुछ भाव थे। | ||
जिनसे उर में उठती | जिनसे उर में उठती दु:ख की आग बल॥ | ||
उनकी खग-मृग तक की प्यारी प्रीति को। | उनकी खग-मृग तक की प्यारी प्रीति को। | ||
बतलाते थे मृग-शावक के दृग-सजल॥69॥ | बतलाते थे मृग-शावक के दृग-सजल॥69॥ |
Latest revision as of 14:00, 2 June 2017
| ||||||||||||||||||||||||
पहन हरित-परिधान प्रभूत-प्रफुल्ल हो। |
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख