प्रियप्रवास षष्ठ सर्ग: Difference between revisions
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|पाठ 1= षष्ठ | |पाठ 1= षष्ठ | ||
|शीर्षक 2= छंद | |शीर्षक 2= छंद | ||
|पाठ 2=मन्दाक्रान्ता, मालिनी | |पाठ 2=मन्दाक्रान्ता, [[मालिनी छन्द|मालिनी]] | ||
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जब कुँवर न आते वार भी बीत जाता। | जब कुँवर न आते वार भी बीत जाता। | ||
तब बहुत | तब बहुत दु:ख पा के बाँट देती उन्हें थीं। | ||
दिन-दिन उर में थी वृध्दि पाती निराशा। | दिन-दिन उर में थी वृध्दि पाती निराशा। | ||
तम निबिड़ दृगों के सामने हो रहा था॥15॥ | तम निबिड़ दृगों के सामने हो रहा था॥15॥ | ||
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शोभावाली सुखद कितनी मंजु कुंजें मिलेंगी। | शोभावाली सुखद कितनी मंजु कुंजें मिलेंगी। | ||
प्यारी छाया मृदुल स्वर से मोह लेंगी तुझे वे। | प्यारी छाया मृदुल स्वर से मोह लेंगी तुझे वे। | ||
तो भी मेरा | तो भी मेरा दु:ख लख वहाँ जा न विश्राम लेना॥37॥ | ||
थोड़ा आगे सरस रव का धाम सत्पुष्पवाला। | थोड़ा आगे सरस रव का धाम सत्पुष्पवाला। | ||
Line 245: | Line 245: | ||
तो हो जाना मृदुल इतनी टूटने वे न पावें। | तो हो जाना मृदुल इतनी टूटने वे न पावें। | ||
शाखापत्रों सहित जब तू केलि में लग्न हो तो। | शाखापत्रों सहित जब तू केलि में लग्न हो तो। | ||
थोड़ा सा भी न | थोड़ा सा भी न दु:ख पहुँचे शावकों को खगों के ॥44॥ | ||
तेरी जैसी मृदु पवन से सर्वथा शान्ति-कामी। | तेरी जैसी मृदु पवन से सर्वथा शान्ति-कामी। | ||
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तो प्यारे के दृग युगल के सामने ला उसे ही। | तो प्यारे के दृग युगल के सामने ला उसे ही। | ||
धीरे-धीरे सँभल रखना औ उन्हें यों बताना। | धीरे-धीरे सँभल रखना औ उन्हें यों बताना। | ||
पीला होना प्रबल | पीला होना प्रबल दु:ख से प्रोषिता सा हमारा॥76॥ | ||
यों प्यारे को विदित करके सर्व मेरी व्यथायें। | यों प्यारे को विदित करके सर्व मेरी व्यथायें। | ||
Line 437: | Line 437: | ||
जी जाऊँगी हृदयतल में मैं तुझी को लगाके॥82॥ | जी जाऊँगी हृदयतल में मैं तुझी को लगाके॥82॥ | ||
भ्रांता हो के परम | भ्रांता हो के परम दु:ख औ भूरि उद्विग्नता से। | ||
ले के प्रात: मृदुपवन को या सखी आदिकों को। | ले के प्रात: मृदुपवन को या सखी आदिकों को। | ||
यों ही राधा प्रगट करतीं नित्य ही वेदनायें। | यों ही राधा प्रगट करतीं नित्य ही वेदनायें। |
Latest revision as of 14:03, 2 June 2017
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धीरे-धीरे दिन गत हुआ पद्मिनीनाथ डूबे। |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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