चंपारण्य: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replacement - "पश्चात " to "पश्चात् ")
 
Line 1: Line 1:
{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=चंपारण्य |लेख का नाम=चंपारण्य (बहुविकल्पी)}}
{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=चंपारण्य |लेख का नाम=चंपारण्य (बहुविकल्पी)}}


'''चंपारण्य''' या 'चंपकारण्य' प्राचीन काल में [[बिहार]] में बड़ी गंडक के तट के समीप विस्तीर्ण वन था। [[महाभारत]], [[वनपर्व महाभारत|वनपर्व]] में तीर्थ यात्रानुपर्व के अंतर्गत [[कौशिकी नदी]] (वर्तमान [[कोसी नदी|कोसी]], [[बिहार]]) के पश्चात चंपारण्य का उल्लेख है-
'''चंपारण्य''' या 'चंपकारण्य' प्राचीन काल में [[बिहार]] में बड़ी गंडक के तट के समीप विस्तीर्ण वन था। [[महाभारत]], [[वनपर्व महाभारत|वनपर्व]] में तीर्थ यात्रानुपर्व के अंतर्गत [[कौशिकी नदी]] (वर्तमान [[कोसी नदी|कोसी]], [[बिहार]]) के पश्चात् चंपारण्य का उल्लेख है-
<blockquote>'ततो गच्छेत राजेन्द्र चंपकारण्यमुत्तमम्, तत्रोष्य रजनीमेकां गोसहस्त्रफलं लभेत्'<ref>[[वनपर्व महाभारत|वनपर्व]] 84, 133.</ref></blockquote>
<blockquote>'ततो गच्छेत राजेन्द्र चंपकारण्यमुत्तमम्, तत्रोष्य रजनीमेकां गोसहस्त्रफलं लभेत्'<ref>[[वनपर्व महाभारत|वनपर्व]] 84, 133.</ref></blockquote>



Latest revision as of 07:47, 23 June 2017

चित्र:Disamb2.jpg चंपारण्य एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- चंपारण्य (बहुविकल्पी)

चंपारण्य या 'चंपकारण्य' प्राचीन काल में बिहार में बड़ी गंडक के तट के समीप विस्तीर्ण वन था। महाभारत, वनपर्व में तीर्थ यात्रानुपर्व के अंतर्गत कौशिकी नदी (वर्तमान कोसी, बिहार) के पश्चात् चंपारण्य का उल्लेख है-

'ततो गच्छेत राजेन्द्र चंपकारण्यमुत्तमम्, तत्रोष्य रजनीमेकां गोसहस्त्रफलं लभेत्'[1]

  • चंपारण्य के क्षेत्र में गंडकी नदी के तट पर बगहा नगर बसा हुआ है, इसे लोग 'नारायणी' तथा 'शालिग्रामी' भी कहते हैं।
  • बगहा से 25 मील की दूरी पर दरबाबारी में गंडक, पंचनद तथा सोनहा नदियों का संगम है।
  • निकट ही बावनगढ़ी के खंडहर हैं, जहाँ पांडवों ने अपने वनवास का कुछ समय व्यतीत किया था।
  • पौराणिक किंवदतियों के अनुसार चंपारण्य वही स्थान है, जहाँ श्रीमद्भागवत में वर्णित सजबाह युद्ध हुआ था, किंतु श्रीमद्भागवत के अनुसार इस आख्यायिका की घटना स्थली त्रिकूट पर्वत के निकट थी।
  • गंडक की घाटी में गज और ग्राह के पैरों के चिन्ह भी[2] पाए जाते हैं।
  • चंपारण्य में संगम के निकट वह स्थान भी है, जहाँ से सीता ने राम की सेना तथा लवकुश में होने वाला युद्ध देखा था।
  • यहीं संग्रामपुर का ग्राम है, जहाँ वाल्मीकि का आश्रम बताया जाता है।
  • चंपारन का ज़िला प्राचीन चंपारण्य के क्षेत्र में ही बसा हुआ है।[3]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वनपर्व 84, 133.
  2. श्रद्धालु लोगों की कल्पना के अनुसार
  3. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 322 |

संबंधित लेख