कुंज भवन सएँ निकसलि -विद्यापति: Difference between revisions
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एकहि नगर बसु माधव हे जनि करु बटमारी।। | एकहि नगर बसु माधव हे जनि करु बटमारी।। | ||
छोड कान्ह मोर आंचर रे फाटत नब सारी। | छोड कान्ह मोर आंचर रे फाटत नब सारी। | ||
अपजस होएत | अपजस होएत जगत् भरि हे जानि करिअ उधारी।। | ||
संगक सखि अगुआइलि रे हम एकसरि नारी। | संगक सखि अगुआइलि रे हम एकसरि नारी। | ||
दामिनि आय तुलायति हे एक राति अन्हारी।। | दामिनि आय तुलायति हे एक राति अन्हारी।। |
Latest revision as of 13:48, 30 June 2017
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कुंज भवन सएँ निकसलि रे रोकल गिरिधारी। |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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