कर्मवीर -अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध': Difference between revisions

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देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं  
देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं  
रह भरोसे भाग्य के दुख भोग पछताते नहीं  
रह भरोसे भाग्य के दु:ख भोग पछताते नहीं  
काम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नहीं,  
काम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नहीं,  
भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं,
भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं,
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सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही,  
सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही,  
मानते जो भी हैं सुनते हैं सदा सबकी कही,  
मानते जो भी हैं सुनते हैं सदा सबकी कही,  
जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही,  
जो मदद करते हैं अपनी इस जगत् में आप ही,  
भूल कर वे दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं,  
भूल कर वे दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं,  
कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं।  
कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं।  

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कर्मवीर -अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'
कवि अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'
जन्म 15 अप्रैल, 1865
जन्म स्थान निज़ामाबाद, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 16 मार्च, 1947
मृत्यु स्थान निज़ामाबाद, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ 'प्रियप्रवास', 'वैदेही वनवास', 'पारिजात', 'हरिऔध सतसई'
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' की रचनाएँ

देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं
रह भरोसे भाग्य के दु:ख भोग पछताते नहीं
काम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नहीं,
भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं,
हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले,
सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले।

आज करना है जिसे करते उसे हैं आज ही,
सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही,
मानते जो भी हैं सुनते हैं सदा सबकी कही,
जो मदद करते हैं अपनी इस जगत् में आप ही,
भूल कर वे दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं,
कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं।

जो कभी अपने समय को यों बिताते हैं नहीं,
काम करने की जगह बातें बनाते हैं नहीं,
आज कल करते हुए जो दिन गँवाते हैं नहीं,
यत्न करने से कभी जो जी चुराते हैं नहीं,
बात है वह कौन जो होती नहीं उनके लिए,
वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिए।

व्योम को छूते हुए दुर्गम पहाड़ों के शिखर,
वे घने जंगल जहाँ रहता है तम आठों पहर,
गरजते जल-राशि की उठती हुई ऊँची लहर,
आग की भयदायिनी फैली दिशाओं में लपट,
ये कँपा सकती कभी जिसके कलेजे को नहीं,
भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कहीं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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