प्रियप्रवास सप्तम सर्ग: Difference between revisions
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|पाठ 1= सप्तम | |पाठ 1= सप्तम | ||
|शीर्षक 2= छंद | |शीर्षक 2= छंद | ||
|पाठ 2=मन्दाक्रान्ता, मालिनी | |पाठ 2=मन्दाक्रान्ता, [[मालिनी छन्द|मालिनी]] | ||
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संक्षुब्ध हो सबल बहती थी जहाँ शोक-धारा॥5॥ | संक्षुब्ध हो सबल बहती थी जहाँ शोक-धारा॥5॥ | ||
यानों से हो | यानों से हो पृथक् तज के संग भी साथियों का। | ||
थोड़े लोगों सहित गृह की ओर वे आ रहे थे। | थोड़े लोगों सहित गृह की ओर वे आ रहे थे। | ||
विक्षिप्तों सा वदन उनका आज जो देख लेता। | विक्षिप्तों सा वदन उनका आज जो देख लेता। | ||
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उस वर-धन को मैं माँगती चाहती हूँ। | उस वर-धन को मैं माँगती चाहती हूँ। | ||
उपचित जिससे है वंश की बेलि होती। | उपचित जिससे है वंश की बेलि होती। | ||
सकल | सकल जगत् प्राणी मात्रा का बीज जो है। | ||
भव-विभव जिसे खो है वृथा ज्ञात होता॥42॥ | भव-विभव जिसे खो है वृथा ज्ञात होता॥42॥ | ||
Latest revision as of 13:27, 1 August 2017
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ऐसा आया यक दिवस जो था महा मर्म्मभेदी। |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख