सौर दिन: Difference between revisions
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लंकार्धरात्रसमये दिनप्रवृत्तिं जगाद चार्यभटः। | लंकार्धरात्रसमये दिनप्रवृत्तिं जगाद चार्यभटः। | ||
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Latest revision as of 08:34, 15 March 2018
दोनों सूर्योदयों के बीच की कालावधि अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अवधि मानी जाती है। यह सौर दिन है और लोक-दिन भी। किन्तु तिथि तो काल का चान्द्र विभाग है जिसका सौर दिन के विभिन्न दिग्-विभागों में अन्त होता है। 'दिन' शब्द के दो अर्थ है-
- सूर्योदय से सूर्यास्त तक,
- सूर्योदय से सूर्योदय तक।
- ऋग्वेद[1] में 'अहः' शब्द का दिन के 'कृष्ण' भाग (रात्रि) एवं 'अर्जुन' (चमकदार या श्वेत) भाग की ओर संकेत है।[2] ऋग्वेद में रात्रि शब्द का प्रयोग उतना नहीं हुआ है जितना कि 'अहन्' का, किन्तु 'दिन' का सामासिक प्रयोग अधिक हुआ है, यथा - सुदिनत्व', 'सुदिन', मध्यन्दिन।'
- 'अहोरात्र' (दिन-रात्रि) एक बार आया है।[3]
- पूर्वाह्ण (दिन का प्रथम भाग) ऋग्वेद[4] में आया है। दिन के तीन भागों (प्रातः, संगव एवं मध्यन्दिन) का उल्लेख है।[5] दिन के पाँच भागों में उपर्युक्त तीन के अतिरिक्त अन्य दो हैं अपराह्ण एवं अस्तम्य, अस्तगमन या सायाह्न। ये पाँचों भाग शतपथ ब्राह्मण[6] में उल्लिखित हैं। 'प्रातः' एवं 'सायम्' ऋग्वेद[7] में आए हैं।
- कौटिल्य[8], दक्ष एवं कात्यायन ने दिन रात्रि को आठ भागों में बाँटा है।
- दिन के आरम्भ के विषय में कई मत हैं। यहूदियों ने दिन का आरम्भ सायंकाल से माना है।[9]
- मिस्रवासियों ने सूर्योदय से सूर्यास्त तक के दिन को 12 भागों में बाँटा; उनके घण्टे ऋतुओं पर निर्भर थे।
- बेबिलोनियों ने दिन का आरम्भ सूर्योदय से माना है और दिन तथा रात्रि को 12 भागों में बाँटा है, जिसमें प्रत्येक भाग दो विषुवीय घण्टों का होता है।
- एथेंस एवं यूनान में ऐतिहासिक कालों में दिन, सामान्यतः पंचांग के लिए सूर्यास्त से आरम्भ होता था।
- रोम में दिन का आरम्भ आधी रात से होता था।
- भारतीय लेखकों ने दिनारम्भ सूर्योदय से माना है[10], किन्तु वे दिन के विभिन्न आरम्भों से अनभिज्ञ नहीं थे।
- पंचसिद्धान्तिका[11] में आया है कि आर्यभट ने घोषित किया है कि लंका में दिन का आरम्भ अर्धरात्रि से होता है, किन्तु पुनः उन्होंने कहा है कि दिन का आरम्भ सूर्योदय से होता है और लंका का वह सूर्योदय सिद्धपुर से मिलता है, यमकोटि में मध्याह्न के तथा रोमक देश में अर्धरात्रि से मिलता है।[12]
- आधुनिक काल में लोक-दिन का आरम्भ अर्द्धरात्रि से होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ऋग्वेद 6|9|1
- ↑ अहश्च कृष्णमहरर्जुनं च वि वर्तेते रजसी वेद्याभिः
- ↑ ऋग्वेद 10|190|2
- ↑ ऋग्वेद 10|34|11
- ↑ ऋग्वेद 5|17|3
- ↑ शतपथब्राह्मण 2|3|2|9
- ↑ ऋग्वेद 5|77|2, 8|2|20 एवं 10|146|3 एवं 40
- ↑ कौटिल्य 1|19
- ↑ जेनेसिस 1|5 एवं 1|13
- ↑ ब्राह्मस्फुट-सिद्धान्त 11|33
- ↑ पंचसिद्धान्तिका 15|20 एवं 23
- ↑
लंकार्धरात्रसमये दिनप्रवृत्तिं जगाद चार्यभटः।
भूयः स एव सूर्योदयात्प्रभृत्याह लंकायाम्।।
उदयो यो लंकायां सोऽस्तमयाः सवितुरेव सिद्धपुरे।
मध्याह्नो यमकोट्यां रोमकविषयेऽर्धरात्रः सः।। पंचसिद्धान्तिका 15, 20, 33।
बाहरी कड़ियाँ
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