इट्टागी: Difference between revisions

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[[कर्नाटक]] राज्य के [[रायचूर ज़िला|रायचूर ज़िले]] में बेनी-कोप्पा से चार मील दक्षिण में स्थित इट्टागी ग्राम में एक चालुक्य कालीन मन्दिर है, जिसे कल्याणी नरेश त्रिभुवनमल्ल विक्रमादित्य षष्ठ (1076-1126 ई.) के सेनापति महादेव ने 1112 ई. में बनवाया था। यह सूचना एक कत्रड़ शिलालेख से मिलती है, जो मन्दिर के समीप एक प्रकोष्ठ पर उत्कीर्ण है। मन्दिर को इसके निर्माता ने देवालय-चक्रवर्ती नाम दिया था, जो वास्तुकला, मूर्तिकला तथा तक्षण कला की दृष्टि से एक सार्थक अभिधान जान पड़ता है। मंदिर के अंगों को संतुलित और सुडौल अनुपात और अलंकरणों की व्यवस्थित संरचना को देखते हुए यह मन्दिर अपने ढंग का सर्वोत्तम वास्तु नमूना कहा जा सकता है। इससें पूर्व-पश्चिम की ओर गर्भगृह, गलियारा, मण्डप के अतिरिक्त सामने की ओर चौसठ स्तम्भों का मण्डप है। यह स्तम्भ-मण्डप अपने आप में भव्य कल्पना है। बीच में चार स्तम्भों पर टिकी छत के प्रत्येक कोने में त्रिभुजाकार कोने हैं। जिनमें जाली का अत्यन्त महीन काम है। स्तम्भों और द्धार शाखाओं के अलंकरणों के सामने सोने-चाँदी की नक़्क़ाशी फीकी लगती है। मण्डप और विमान के बाहय भाग में अन्य मन्दिरों की तरह ही प्रचुर मात्रा में अलंकरण हुआ है। इसी प्रकार शिखर भी अलंकृत हैं। यह मंदिर होयसल मन्दिरों के अत्यधिक निकट है। वर्तमान में भी यह मन्दिर सुरक्षित अवस्था में है।
[[चित्र:Mahadeva-Temple-Itagi.jpg|thumb|300px|महादेव मंदिर, इट्टागी]]
'''इट्टागी''' [[कर्नाटक]] राज्य के [[रायचूर ज़िला|रायचूर ज़िले]] में बेनी-कोप्पा से चार मील [[दक्षिण]] में स्थित ग्राम है जिसमें एक [[चालुक्य साम्राज्य|चालुक्य कालीन]] मन्दिर है, जिसे [[कल्याणी कर्नाटक|कल्याणी नरेश]] त्रिभुवनमल्ल विक्रमादित्य षष्ठ (1076-1126 ई.) के सेनापति महादेव ने 1112 ई. में बनवाया था। यह सूचना एक [[कन्नड़ भाषा|कन्नड़]] शिलालेख से मिलती है, जो मन्दिर के समीप एक प्रकोष्ठ पर उत्कीर्ण है।  
 
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*ऐतिहासिक स्थानावली | पृष्ठ संख्या= 79| विजयेन्द्र कुमार माथुर |  वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
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thumb|300px|महादेव मंदिर, इट्टागी इट्टागी कर्नाटक राज्य के रायचूर ज़िले में बेनी-कोप्पा से चार मील दक्षिण में स्थित ग्राम है जिसमें एक चालुक्य कालीन मन्दिर है, जिसे कल्याणी नरेश त्रिभुवनमल्ल विक्रमादित्य षष्ठ (1076-1126 ई.) के सेनापति महादेव ने 1112 ई. में बनवाया था। यह सूचना एक कन्नड़ शिलालेख से मिलती है, जो मन्दिर के समीप एक प्रकोष्ठ पर उत्कीर्ण है।

मन्दिर को इसके निर्माता ने देवालय-चक्रवर्ती नाम दिया था, जो वास्तुकला, मूर्तिकला तथा तक्षण कला की दृष्टि से एक सार्थक अभिधान जान पड़ता है। मंदिर के अंगों को संतुलित और सुडौल अनुपात और अलंकरणों की व्यवस्थित संरचना को देखते हुए यह मन्दिर अपने ढंग का सर्वोत्तम वास्तु नमूना कहा जा सकता है। इससें पूर्व-पश्चिम की ओर गर्भगृह, गलियारा, मण्डप के अतिरिक्त सामने की ओर चौसठ स्तम्भों का मण्डप है। यह स्तम्भ-मण्डप अपने आप में भव्य कल्पना है। बीच में चार स्तम्भों पर टिकी छत के प्रत्येक कोने में त्रिभुजाकार कोने हैं। जिनमें जाली का अत्यन्त महीन काम है।

स्तम्भों और द्धार शाखाओं के अलंकरणों के सामने सोने-चाँदी की नक़्क़ाशी फीकी लगती है। मण्डप और विमान के बाहय भाग में अन्य मन्दिरों की तरह ही प्रचुर मात्रा में अलंकरण हुआ है। इसी प्रकार शिखर भी अलंकृत हैं। यह मंदिर होयसल मन्दिरों के अत्यधिक निकट है। वर्तमान में भी यह मन्दिर सुरक्षित अवस्था में है।


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  • ऐतिहासिक स्थानावली | पृष्ठ संख्या= 79| विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार


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