ऐनू: Difference between revisions

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Latest revision as of 05:31, 19 July 2018

ऐनू जापान के उत्तरी द्वीप होकैड़ो के एक सीमित क्षेत्र में तथा सैकालीन द्वीप के कुछ भागों में रहनेवाली आदिवासियों की एक अवशिष्ट जाति है। इस ऐनू आदिवासी जाति का संबंध कुछ सीमा तक रिऊक्यू द्वीपसमूहवाले लोगों से है। ऐनू जाति के लोगों की संख्या अब बहुत कम रह गई है तथा उत्तरोत्तर क्षीण होती जा रही है। बढ़ती हुई जापानी सभ्यता के साथ-साथ आगे बढ़ने में ये लोग पूर्णतया असमर्थ हैं। शारीरिक दृष्टि से भी ये संभवत: उत्तरी एशिया में निवास करनेवाले प्रोटोनॉडिक समूह के हैं, जो किसी समय उत्तरी एशिया में काफी दूर तक फैले हुए थे। ऐनू लोग निस्संदेह मनुष्य की प्राचीनतम जाति के अवशेष हैं। इनकी सभ्यता कई बातों में पत्थर युग की याद दिलाती है। कृषि के प्राचीन ढंग को इस जाति ने अभी तक सुरक्षित रखा है। इनके पुरुष अभी तक आखेट युग में ही बने हुए हैं तथा स्त्रियाँ जंगलों से जीवनोपयोगी सामग्री एकत्रित करने से कुछ ही आगे बढ़ी हुई हैं; अर्थात्‌ उनकी जीवनचर्या कृषि के आरंभिक युग जैसी ही है।

इनके धार्मिक आचार विचार उत्तरी एशिया में बसनेवाली अन्य आदिम जातियों से मिलते जुलते हैं। इनका धर्म अध्यात्ममूलक है तथा इनमें एक विशेष प्रकार का धार्मिक परमानंद लक्षित होता है जिसे उत्तरध्रवीय वातोन्माद कहते हैं। भालू का इनकी पूजापद्धति में विशेष स्थान है। इस पशु को शैशवावस्था में ही पकड़ लिया जाता है तथा स्त्रियों द्वारा उसका लालन पालन बड़ी सावधानी और प्रेम से किया जाता है। अधिकांश ऐनू ग्रामों में काठ के पिंजरे देखे जा सकते हैं, जिनमें भालू के बच्चे पाले जाते हैं। गाँवों में एक और विशेष वस्तु भी देखी जा सकती है। यह एक प्रकार की लकड़ी है जिसे काटकर और पैनी बनाकर भूमि में गाड़ दिया जाता है। इस लकड़ी का धार्मिक महत्व होता है।

इनकी भाषा और लिपि पर जापानी का कुछ प्रभाव दिखाई पड़ता है, परंतु उच्चारण में भिन्नता है। इस समय इनकी संख्या घटकर केवल १८,००० रह गई है। इनकी उत्पत्ति के विषय में विद्वानों के विभिन्न मत हैं।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 277 |

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