अलाउद्दीन बहमन शाह प्रथम: Difference between revisions
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*वह [[दिल्ली]] के सुल्तान [[मुहम्मद बिन तुग़लक़]] के दरबार में एक [[अफ़ग़ान]] अथवा तुर्क सरदार था, जहाँ उसे 'ज़फ़र ख़ाँ' का ख़िताब मिला था। | *वह [[दिल्ली]] के सुल्तान [[मुहम्मद बिन तुग़लक़]] के दरबार में एक [[अफ़ग़ान]] अथवा तुर्क सरदार था, जहाँ उसे 'ज़फ़र ख़ाँ' का ख़िताब मिला था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=51|url=}}</ref> | ||
*सुल्तान मुहम्मद बिन तुग़लक़ | |||
*सुल्तान मुहम्मद बिन तुग़लक़ की सनकों से तंग आकर दक्षिण के [[मुसलमान]] अमीरों ने विद्रोह करके [[दौलताबाद]] के क़िले पर अधिकार कर लिया और हसन उर्फ ज़फ़र ख़ाँ को अपना सुल्तान बनाया। | |||
*उसने सुल्तान अलाउद्दीन बहमन शाह की उपाधि धारण की और 1347 ई. में कुलवर्ग ([[गुलबर्गा]]) को अपनी राजधानी बनाकर बहमनी राजवंश की नींव डाली। | *उसने सुल्तान अलाउद्दीन बहमन शाह की उपाधि धारण की और 1347 ई. में कुलवर्ग ([[गुलबर्गा]]) को अपनी राजधानी बनाकर बहमनी राजवंश की नींव डाली। | ||
*इतिहासकार [[फ़रिश्ता]] ने हसन के सम्बन्ध में लिखा है कि, "वह दिल्ली के [[ब्राह्मण]] ज्योतिषी गंगू के यहाँ नौकर था, जिसे मुहम्मद बिन तुग़लक़ बहुत मानता था। अपने ब्रह्मण मालिक का कृपापात्र होने के कारण वह तुग़लक़ की नज़र में चढ़ा। इसलिए अपने संरक्षक गंगू ब्राह्मण के प्रति आदर भाव से उसने बहमनी उपाधि धारण की। | *इतिहासकार [[फ़रिश्ता]] ने हसन के सम्बन्ध में लिखा है कि, "वह दिल्ली के [[ब्राह्मण]] ज्योतिषी गंगू के यहाँ नौकर था, जिसे मुहम्मद बिन तुग़लक़ बहुत मानता था। अपने ब्रह्मण मालिक का कृपापात्र होने के कारण वह तुग़लक़ की नज़र में चढ़ा। इसलिए अपने संरक्षक गंगू ब्राह्मण के प्रति आदर भाव से उसने बहमनी उपाधि धारण की। | ||
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अलाउद्दीन बहमन शाह प्रथम दक्षिण के बहमनी वंश का प्रथम सुल्तान था। उसका पूरा ख़िताब "सुल्तान अलाउद्दीन हसन शाह अल-बली-अलबहमनी" था। इसके पहले वह हसन के नाम से विख्यात था।
- वह दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद बिन तुग़लक़ के दरबार में एक अफ़ग़ान अथवा तुर्क सरदार था, जहाँ उसे 'ज़फ़र ख़ाँ' का ख़िताब मिला था।[1]
- सुल्तान मुहम्मद बिन तुग़लक़ की सनकों से तंग आकर दक्षिण के मुसलमान अमीरों ने विद्रोह करके दौलताबाद के क़िले पर अधिकार कर लिया और हसन उर्फ ज़फ़र ख़ाँ को अपना सुल्तान बनाया।
- उसने सुल्तान अलाउद्दीन बहमन शाह की उपाधि धारण की और 1347 ई. में कुलवर्ग (गुलबर्गा) को अपनी राजधानी बनाकर बहमनी राजवंश की नींव डाली।
- इतिहासकार फ़रिश्ता ने हसन के सम्बन्ध में लिखा है कि, "वह दिल्ली के ब्राह्मण ज्योतिषी गंगू के यहाँ नौकर था, जिसे मुहम्मद बिन तुग़लक़ बहुत मानता था। अपने ब्रह्मण मालिक का कृपापात्र होने के कारण वह तुग़लक़ की नज़र में चढ़ा। इसलिए अपने संरक्षक गंगू ब्राह्मण के प्रति आदर भाव से उसने बहमनी उपाधि धारण की।
- फ़रिश्ता की यह कहानी सही प्रतीत नहीं होती है, क्योंकि इसका समर्थन सिक्कों अथवा अन्य लेखों से नहीं होता।
- उसके पहले की मुसलमानी तवारिख़ 'बुरहान-ए-मासिर' के अनुसार, 'हसन बहमन वंश का था'। इसीलिए उसका वंश बहमनी कहलाया।
- वास्तव में हसन अपने को फ़ारस के प्रसिद्ध वीर योद्धा 'इस्कान्दियार' के पुत्र 'बहमन' का वंशज मानता था।
- ज़फ़र ख़ाँ एक सफल योद्धा था, उसने अपनी मृत्यु (फ़रवरी 1358 ई.) से पूर्व अपना राज्य उत्तर में बैन-गंगा नदी से लेकर दक्षिण में कृष्णा नदी तक फैला लिया था।
- उसने अपने राज्य को चार सूबों—कुलबर्ग, दौलताबाद, बरार और बीदर में बाँट दिया था और शासन का उत्तम प्रबंध किया था।
- 'बुरहान-ए-मासिर' के अनुसार वह इंसाफ पसंद सुल्तान था। जिसने इस्लाम धर्म के प्रचार के लिए बहुत कार्य किया।
- जफ़र ख़ाँ की इतिहासकारों द्वारा तथा एक अच्छे न्यायकारी सुल्तान के रूप में प्रशंसा की गई है, जो एक प्रजापालक व्यक्ति था।
- उसने अपने पड़ोसी राज्यों से अनेक युद्ध किये, विशेषरूप से हिन्दू राज्य विजयनगर से, जो कि उसी के समय में स्थापित हुआ था।
- जफ़र ख़ाँ जब मृत्यु शैया पर था, तभी उसने अपने सबसे बड़े पुत्र मुहम्मदशाह को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया था।
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संबंधित लेख
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 51 |