शरतचंद्र दास: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
m (Adding category Category:भारतीय अन्वेषक (को हटा दिया गया हैं।)) |
No edit summary |
||
(One intermediate revision by the same user not shown) | |||
Line 6: | Line 6: | ||
==मृत्यु== | ==मृत्यु== | ||
शरतचंद्र दास का [[1917]] ई. में निधन हो गया। | शरतचंद्र दास का [[1917]] ई. में निधन हो गया। | ||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
Line 14: | Line 12: | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{भारतीय अन्वेषक}}{{विदेशी अन्वेषक}} | |||
[[Category:इतिहास कोश]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:चरित कोश]][[Category:भारतीय चरित कोश]] | [[Category:अन्वेषक]][[Category:इतिहास कोश]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:चरित कोश]][[Category:भारतीय चरित कोश]] | ||
[[Category:भारतीय अन्वेषक]] | [[Category:भारतीय अन्वेषक]][[Category:भूगोलवेत्ता]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
Latest revision as of 10:27, 13 January 2020
शरतचंद्र दास ( जन्म- 1849, बंगाल, मृत्यु- 1917) एक साहसी गैर तिब्बती व्यक्ति थे जिन्होंने तिब्बत जाने का दुस्साहस किया और लोगों को तिब्बत और उसकी राजधानी ल्हासा के विषय में जानकारी दी थी।
परिचय
साहस करके पहली बार भारत से तिब्बत जाने वाले गैर तिब्बती शरद चंद्र दास का जन्म 1849 ई. में बंगाल में एक निर्धन परिवार में हुआ था। उन्होंने अपना जीवन एक साधारण अध्यापक के रूप में आरंभ किया। परंतु उनके अंदर ज्ञान अर्जित करने तथा दुस्साहसिक कार्य करने की बड़ी लगन थी। इसी प्रेरणा से वे 1879 में उस समय तिब्बत गए जब किसी भी गैर तिब्बती का वहां जाना निषिद्ध था। वे आधुनिक युग के लोगों को तिब्बत और उसकी राजधानी ल्हासा के बारे में सूचना देने वाले पहले व्यक्ति थे। [1]
दुस्साहसिक कार्य
शरतचंद्र दास को दुस्साहसिक कार्य करने में बड़ा आनंद आता था। तिब्बत और उसकी राजधानी ल्हासा के बारे में जानने के लिये उन्होंने[2] तिब्बत में प्रवेश किया और लोगों को वहाँ की जानकारी दी थी। 1881 में वे पुन: तिब्बत गए। उन्होंने तिब्बती भाषा सीखी और एक तिब्बती ग्रंथ का अंग्रेजी में अनुवाद किया। दास की दूसरी अंग्रेजी पुस्तक 'इंडियन पंडित्स इन लैंड ऑफ स्नो'[3] से दुनिया यह जान सकी कि मध्य युग में किस प्रकार भारतीय बौद्ध भिक्षु तिब्बत गए और वहां उन्होंने बौद्ध धर्म तथा भारतीय संस्कृति का प्रचार किया।
मृत्यु
शरतचंद्र दास का 1917 ई. में निधन हो गया।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख