मोहित शर्मा (मेजर): Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 37: | Line 37: | ||
|शीर्षक 5= | |शीर्षक 5= | ||
|पाठ 5= | |पाठ 5= | ||
|अन्य जानकारी=मेजर मोहित शर्मा [[11 दिसंबर]], [[1999]] को इंडियन मिलिट्री एकेडमी (आईएमए) से पासआउट हुए और पहला कमीशन 5 मद्रास में मिला। पहली पोस्टिंग [[हैदराबाद]] थी और यहां से उन्हें [[ | |अन्य जानकारी=मेजर मोहित शर्मा [[11 दिसंबर]], [[1999]] को इंडियन मिलिट्री एकेडमी (आईएमए) से पासआउट हुए और पहला कमीशन 5 मद्रास में मिला। पहली पोस्टिंग [[हैदराबाद]] थी और यहां से उन्हें [[कश्मीर]] में 38 राष्ट्रीय राइफल्स के साथ तैनात किया गया। | ||
|बाहरी कड़ियाँ= | |बाहरी कड़ियाँ= | ||
|अद्यतन= | |अद्यतन= |
Latest revision as of 10:45, 27 April 2021
मोहित शर्मा (मेजर)
| |
पूरा नाम | मेजर मोहित शर्मा |
जन्म | 13 जनवरी, 1978 |
जन्म भूमि | रोहतक, हरियाणा |
स्थान | कुपवाड़ा, नॉर्थ कश्मीर |
सेना | भारतीय सेना |
रैंक | मेजर |
यूनिट | 1 पैरा स्पेशल फोर्स |
सेवा काल | 1999-2009 |
सम्मान | अशोक चक्र, सेना मेडल |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | मेजर मोहित शर्मा 11 दिसंबर, 1999 को इंडियन मिलिट्री एकेडमी (आईएमए) से पासआउट हुए और पहला कमीशन 5 मद्रास में मिला। पहली पोस्टिंग हैदराबाद थी और यहां से उन्हें कश्मीर में 38 राष्ट्रीय राइफल्स के साथ तैनात किया गया। |
मेजर मोहित शर्मा (अंग्रेज़ी: Major Mohit Sharma, जन्म- 13 जनवरी, 1978; शहादत- 21 मार्च, 2009) भारतीय सेन्य अधिकारी थे, जिन्हें मरणोपरांत 'अशोक चक्र' से सम्मानित किया गया था, जो भारत का सर्वोच्च शांति-कालीन सैन्य अलंकरण है। मेजर शर्मा कुलीन 1 पैरा एसएफ से थे। वह 21 मार्च, 2009 को नॉर्थ कश्मीर के कुपवाड़ा में शहीद हो गए थे। मेजर मोहित शर्मा ब्रावो असॉल्ट टीम को लीड कर रहे थे और 1 पैरा स्पेशल फोर्स के कमांडो थे। उन्होंने हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकियों को मौत के घाट उतारा था। उनकी बहादुरी आज भारतीय सेना के वीरों में देश की खातिर कुछ भी कर गुजरने का जज्बा पैदा करती है।
अंतिम ऑपरेशन
मेजर मोहित शर्मा 21 मार्च, 2009 को नॉर्थ कश्मीर के कुपवाड़ा में शहीद हुए। मेजर मोहित ब्रावो असॉल्ट टीम को लीड कर रहे थे और वह 1 पैरा स्पेशल फोर्स के कमांडो थे। मेजर मोहित ने हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकियों को मौत के घाट उतारा। कुपवाड़ा के घने हफरुदा के जंगलों में मुठभेड़ हुई और मेजर मोहित ने बहादुरी से मोर्चा संभाला। मेजर मोहित आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हो गए। लेकिन शहीद होने से पहले उन्होंने 4 आतंकियों को ढेर किया और अपने दो साथियों की जान बचाई। मेजर मोहित को उनकी बहादुरी के लिए शांति काल में दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था। यह सम्मान मरणोपरांत उन्हें दिया गया था। इसके अलावा उन्हें सेना मेडल से भी नवाजा गया था। मेजर मोहित शर्मा जिस ऑपरेशन को लीड कर रहे थे, उसे ऑपरेशन रक्षक नाम दिया गया था।
13 जनवरी, 1978 को हरियाणा के रोहतक में जन्में मेजर मोहित शर्मा को जंगलों में कुछ आतंकियों के छिपे होने की इंटेलीजेंस मिली थी जो घुसपैठ की कोशिशें कर रहे थे। मेजर मोहित ने पूरे ऑपरेशन की प्लानिंग की और अपनी कमांडो टीम को लीड किया। तीनों तरफ से आतंकी फायरिंग कर रहे थे और मेजर मोहित बिना डरे अपनी टीम को आगे बढ़ने के लिए कहते रहे। फायरिंग इतनी जबर्दस्त थी कि चार कमांडो तुरंत ही उसकी चपेट में आ गए थे। मेजर मोहित ने अपनी सुरक्षा पर जरा भी ध्यान नहीं दिया और वह रेंगते हुए अपने साथियों तक पहुंचे और उनकी जान बचाई। बिना सोचे-समझे उन्होंने आतंकियों पर ग्रेनेड फेंके और दो आतंकी वहीं ढेर हो गए। इसी दौरान मेजर मोहित के सीने में एक गोली लग गई। इसके बाद भी वह रुके नहीं और अपने कमांडोज को बुरी तरह घायल होने के बाद निर्देश देते रहे।
मेजर मोहित शर्मा को अपने साथियों पर खतरे का अंदेशा हो गया था और इसके बाद उन्होंने आगे बढ़ाकर चार्ज संभाला। मेजर मोहित ने दो और आतंकियों को ढेर किया और इसी दौरान वह शहीद हो गए। मेजर मोहित शर्मा ने हिजबुल के दो आतंकियों के साथ संपर्क बना लिया था जिनके नाम थे अबु तोरारा और अबु सबजार और इसी दौरान उन्होंने अपना नाम इफ्तिखार बट रखा था। मेजर मोहित ने उन्हें इतना भरोसे में ले लिया था कि जब उन्होंने आतंकियों के सामने सेना के काफिले पर हमले की योजना बताई तो आतंकियों ने उनकी बात पर यकीन कर लिया था। मेजर मोहित शर्मा इन आतंकियों के साथ शोपियां में अज्ञात जगह पर एक छोटे-से कमरे में रहते थे।
नेशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए) से पास आउट होने के बाद मेजर मोहित शर्मा 11 दिसंबर, 1999 को इंडियन मिलिट्री एकेडमी (आईएमए) से पासआउट हुए और पहला कमीशन 5 मद्रास में मिला। पहली पोस्टिंग हैदराबाद थी और यहां से उन्हें कश्मीर में 38 राष्ट्रीय राइफल्स के साथ तैनात किया गया। मेजर मोहित ने आतंकियों को बताया था कि साल 2001 में उनके भाई को भारतीय सुरक्षाबलों ने मार दिया था और अब उन्हें अपने भाई की मौत का बदला लेना है। मेजर ने उनसे कहा कि बदला लेने के लिए उन्हें आतंकियों की मदद चाहिए होगी। मेजर मोहित ने दोनों आतंकियों को बताया था कि उनकी प्लानिंग आर्मी चेकप्वाइंट पर हमला करने की है और इसके लिए उन्होंने सारा ग्राउंडवर्क भी कर लिया था।
आर्मी चेकप्वाइंट पर हमले की कहानी
बहादुर पैरा स्पेशल फोर्सेज के ऑफिसर ने आतंकियों का भरोसा जीतने के लिए उन्हें हाथ से तैयार मैप्स तक दिखाए थे। आतंकी अक्सर उनसे यह भी पूछते थे कि वह आखिर कौन हैं लेकिन हर बार मेजर मोहित शर्मा उन्हें चकमा देने में कामयाब हो जाते थे। आतंकियों ने तय किया कि वह मेजर मोहित की मदद करेंगे। हिजबुल आतंकियों को मेजर मोहित ने बताया कि वह कई हफ्तों तक अंडरग्राउंड हो जाएंगे ताकि हमले के लिए हथियार और बाकी साजो-सामान जुटा सकें। मेजर मोहित ने यह भी कहा कि वह अपने गांव तब तक वापस नहीं जाएंगे जब तक आर्मी चेक प्वाइंट पर हमला नहीं कर लेंगे। तोरारा और सबजार ने मेजर मोहित के लिए ग्रेनेड्स की खेप इकट्ठा की और तीन और आतंकियों का इंतजाम पास के गांव से किया।
आतंकियों पर वार
तोरारा को मेजर मोहित पर दोबारा शक हुआ और इस पर मेजर ने जवाब दिया, ‘अगर तुम्हें कोई शक है तो मुझे मार दो।’ मेजर मोहित ने अपनी एके-47 जमीन पर गिरा दी। उन्होंने आगे कहा, ‘तुम ये नहीं कर सकते हो अगर तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है तो। इसलिए तुम्हारे पास मुझे मारने के अलावा कोई और रास्ता नहीं है।’ तोरारा यह सुनकर सोच में पड़ गया और उसने सबजार की तरफ देखा। दोनों एक-दूसरे की तरफ देख रहे थे और उन्होंने अपने हथियार रख दिए थे। इसी समय मेजर मोहित ने अपनी 9 एमएम की पिस्तौल को लोड किया और दोनों आतंकियों को देखते ही देखते ढेर कर दिया। मेजर मोहित ने पाकिस्तान की सरजमीं पर आतंकियों को ढेर किया था।
|
|
|
|
|