त्रयोदशी: Difference between revisions
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Latest revision as of 13:45, 9 May 2021
- सूर्य से चन्द्र का अन्तर जब 145° से 156° तक होता है, तब शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी और 313° से 336° तक कृष्ण त्रयोदशी रहती है।
- इसके स्वामी कामदेव हैं।
- त्रयोदशी तिथि का विशेषण ‘जयकरा’ है।
- त्रयोदशी बुधवार को मृत्युदा तथा मंगलवार को सिद्धिदा होती है।
- त्रयोदशी तिथि की दिशा दक्षिण है।
- शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी में समस्त शुभ कार्य किये जाते हैं, किंतु कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को चन्द्रमा के क्षीण हो मृतप्राय होने से समस्त शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं।
- गर्गसंहिता के अनुसार त्रयोदशी को निम्न कार्य करना चाहिये-
जया त्रयोदशीमाह कर्तव्यं कर्म शोभनम्।
वस्त्रमाल्यमलंकारविप्राण्याभरणानि च।।
सौभाग्यकरणं स्त्रीणां कन्यावरणमेव च।
मुण्डनं युग्मवसनं कामं विन्द्याच्च देवताम्।।
- शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी शिवार्चन हेतु शुभ तथा कृष्ण पक्ष की अशुभ होती है।
- त्रयोदशी की अमृत कला का पान कुबेर करते हैं।
- विशेष – दोनों पक्षों की त्रयोदशी को निरन्तरता के साथ कामदेव की पूजा करते रहने से अविवाहितों का विवाह हो जाता है तथा स्वयं रूपवान एवं तेजस्वी होता है।
- भविष्य पुराण के अनुसार -
कामदेवं त्रयोदश्यां सुरूपो जायते ध्रुवम्।
इष्टां रूपवतीं भार्यां लभेत्कामांश्च पुष्कलान्।।
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