सुमंत मूलगांवकर: Difference between revisions

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Latest revision as of 11:22, 31 July 2023

सुमंत मूलगांवकर
पूरा नाम सुमंत मूलगांवकर
जन्म 5 मार्च, 1906
जन्म भूमि मुंबई, महाराष्ट्र
मृत्यु 1 जुलाई, 1989
पति/पत्नी लीला सुमंत मूलगांवकर
कर्म भूमि भारत
विद्यालय कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग, पुणे
पुरस्कार-उपाधि पद्म भूषण, 1990
प्रसिद्धि भूतपूर्व टाटा मोटर्स के एमडी
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी सुमंत मूलगांवकर ने कई ऐसे कार्य और निर्णय लिए, जिसके लिए आज भी कंपनी के कर्मचारी और अधिकारी उन्हें याद करते हैं। जमशेदपुर (झारखंड) की टेल्को कॉलोनी में उनके नाम पर स्टेडियम भी बनाया गया है।

सुमंत मूलगांवकर (अंग्रेज़ी: Sumant Moolgaokar, जन्म- 5 मार्च, 1906; मृत्यु- 1 जुलाई, 1989) 'टाटा मोटर्स' के एमडी थे। उन्हें भारत सरकार द्वारा सन 1990 में उद्योग एवं व्यापार के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।

परिचय

सुमंत मूलगांवकर का जन्म 5 मार्च, 1906 को मुंबई में हुआ था। उन्होंने पुणे के कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से एजुकेशन प्राप्त की थी। वह टाटा स्टील के वाइस चैयरमेन के रूप में भी काम कर चुके थे। सुमंत मूलगांवकर एक इंडियन इंडस्ट्रिलिस्ट थे। इसके साथ ही उन्हें टाटा मोटर्स के आर्किटेक्चर के रूप में भी जाना जाता है। उन्हें 1990 में भारत के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान 'पद्म भूषण' से भी नवाजा गया था।

सम्मान

कंपनी में रहते हुए सुमंत मूलगांवकर ने कई ऐसे कार्य और निर्णय लिए, जिसके लिए आज भी कंपनी के कर्मचारी और अधिकारी उन्हें याद करते हैं। जमशेदपुर (झारखंड) की टेल्को कॉलोनी में उनके नाम पर स्टेडियम भी बनाया गया है। कंपनी ने उन्हें ट्रिब्यूट देने के लिए 1994 में आई टाटा की एक एसयूवी कार का नाम उनके नाम के ही पहले अक्षरों से लेकर रखा और 'सूमो' के साथ लॉन्च किया। दरअसल, कंपनी ने सुमंत से 'Su' और मूलगांवकर से 'Mo' लेकर टाटा की इस एसयूवी का नाम रखा था और ये पहली बार था, जब किसी कंपनी ने अपनी किसी अधिकारी को इतना बड़ा ट्रिब्यूट दिया।

ढाबे पर खाते थे खाना

हर दिन की तरह कंपनी के टॉप एग्जीक्यूटिव साथ में लंच कर रहे थे, पर उन्हीं में से एक थे सुमंत मूलगांवकर जो लंच टाइम में अपनी कार से कहीं चले जाते थे और लंच खत्म होने पर वापस आ जाया करते थे। एक बार टाटा के डीलरों ने एक 5 स्टोर होटल में लंच रखा। उस दिन भी सुमंत मूलगांवकर अपनी कार लेकर बाहर चले गए। कंपनी के कुछ अधिकारियों ने उनका पीछा किया तो यह देख कर हैरान रह गए कि सुमंत अपनी कार एक ढाबे पर रोककर वहां मौजूद ट्रक ड्राइवरों के साथ खाना खा रहे हैं। उस दौरान वह ट्रक ड्राइवरों से टाटा के ट्रकों की अच्छाईयां और उनकी खामियों के बारें में बात कर रहे थे और प्वॉइंट्स नोट कर रहे थे।

सुमंत मूलगांवकर ऑफिस में उन खामियों को खत्म करने के साथ ही टाटा के वाहनों के परफेक्शन के लिए काम करते थे। सुमंत मूलगांवकर के कंपनी के प्रति इस स्वभाव को देख कंपनी ने 1994 में लॉन्च हुई टाटा सूमो का नाम सुमंत के नाम से लिया।

मृत्यु

सुमंत मूलगांवकर की मृत्यु 1 जुलाई, 1989 में हुई। मरणोपरांत 1990 में भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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