त्रिचनापल्ली: Difference between revisions
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'''त्रिचनापल्ली''' या 'त्रिशिरापल्ली' [[कर्नाटक]] का एक महत्त्वपूर्ण दुर्ग है। यह नगरी [[मद्रास]] से 250 मील दूर [[कावेरी नदी]] के तट पर अवस्थित है। यहाँ कर्नाटक की मसनद के दावेदार मुहम्मद अली ने 1751 ई. में शरण ली थी। एक किंवदंती के अनुसार त्रिशिर नामक राक्षस का 'ग्राम' (पल्ली) होने के कारण ही यह नगरी 'त्रिशिरापल्ली' कहलाई। | |||
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ऐसी मान्यता है कि त्रिशिर राक्षस का वध भगवान [[शिव]] ने इसी स्थान पर किया था। त्रिचनापल्ली का दुर्ग [[पल्लव वंश|पल्लव]] कालीन है। यह एक मील लम्बा और आधा मील चौड़ा समकोणाकार बना हुआ है और 272 फुट ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। शिखर पर जाते समय पल्लव नरेशों के समय में निर्मित सौ स्तंभों का एक मंडप और कई गुहा मंदिर भी दिखाई पड़ते हैं। पहले दुर्ग के चारों ओर एक खाई थी और परकोटा खिंचा हुआ था। खाई अब भर दी गई है। भीतर एक चट्टान पर भूतेश्वर शिव और [[गणेश]] के मंदिर स्थित हैं। चट्टान के दक्षिण में नवाब का महल है, जिसे 17वीं शती में चोकानायक ने बनवाया था। चट्टान और मुख्य प्रवेश द्वार के बीच में 'तेघकुलम्' या 'नौका सरोवर' है। गणपति मंदिर दुर्ग से 2 फलांग दूर है। | |||
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त्रिचनापल्ली या 'त्रिशिरापल्ली' कर्नाटक का एक महत्त्वपूर्ण दुर्ग है। यह नगरी मद्रास से 250 मील दूर कावेरी नदी के तट पर अवस्थित है। यहाँ कर्नाटक की मसनद के दावेदार मुहम्मद अली ने 1751 ई. में शरण ली थी। एक किंवदंती के अनुसार त्रिशिर नामक राक्षस का 'ग्राम' (पल्ली) होने के कारण ही यह नगरी 'त्रिशिरापल्ली' कहलाई।
इतिहास
ऐसी मान्यता है कि त्रिशिर राक्षस का वध भगवान शिव ने इसी स्थान पर किया था। त्रिचनापल्ली का दुर्ग पल्लव कालीन है। यह एक मील लम्बा और आधा मील चौड़ा समकोणाकार बना हुआ है और 272 फुट ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। शिखर पर जाते समय पल्लव नरेशों के समय में निर्मित सौ स्तंभों का एक मंडप और कई गुहा मंदिर भी दिखाई पड़ते हैं। पहले दुर्ग के चारों ओर एक खाई थी और परकोटा खिंचा हुआ था। खाई अब भर दी गई है। भीतर एक चट्टान पर भूतेश्वर शिव और गणेश के मंदिर स्थित हैं। चट्टान के दक्षिण में नवाब का महल है, जिसे 17वीं शती में चोकानायक ने बनवाया था। चट्टान और मुख्य प्रवेश द्वार के बीच में 'तेघकुलम्' या 'नौका सरोवर' है। गणपति मंदिर दुर्ग से 2 फलांग दूर है।
ब्रिटिश साम्राज्य में विलय
अभिलेखों में त्रिचनापल्ली का एक नाम 'निचुलपर' भी मिलता है। फ़्राँसीसी तथा उनके आश्रित चन्दा साहब ने जब अर्काट को अपने अधिकार में कर लिया था, तो उन्हें अपना घेरा उठा लेना पड़ा था। 1753 ई. में यहाँ पर पुन: फ़्राँसीसियों के द्वारा घेरा डाला गया, किन्तु 1754 ई. में अंग्रेज़ों ने इस घेरे को तोड़ दिया। यह तब तक कर्नाटक के नवाब के अधीन रहा, जब तक भारतीय ब्रिटिश साम्राज्य में नहीं मिला लिया गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 193 |
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