आजु नाथ एक व्रत -विद्यापति: Difference between revisions

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सदा सोच मोहि होत कवन विधि बांचव हे ।
सदा सोच मोहि होत कवन विधि बांचव हे ।
जे जे सोच मोहि होत कहा समुझाएव हे ।
जे जे सोच मोहि होत कहा समुझाएव हे ।
रउरा जगत के नाथ कवन सोच लागएव हे ।
रउरा जगत् के नाथ कवन सोच लागएव हे ।
नाग ससरि भूमि खसत पुहुमि लोटायत हे ।
नाग ससरि भूमि खसत पुहुमि लोटायत हे ।
कार्तिक पोसल मजूर सेहो धरि खायत हे ।
कार्तिक पोसल मजूर सेहो धरि खायत हे ।
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होत बघम्बर बाघ बसहा धरि खायत हे ।
होत बघम्बर बाघ बसहा धरि खायत हे ।
टूटी खसत रुदराछ मसान जगावत हे ।
टूटी खसत रुदराछ मसान जगावत हे ।
गौरी कहँ दुख होत विद्यापति गावत हे ।
गौरी कहँ दु:ख होत विद्यापति गावत हे ।
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Latest revision as of 13:49, 30 June 2017

आजु नाथ एक व्रत -विद्यापति
कवि विद्यापति
जन्म सन् 1350 से 1374 के मध्य
जन्म स्थान बिसपी गाँव, मधुबनी ज़िला, बिहार
मृत्यु सन् 1440 से 1448 के मध्य
मृत्यु स्थान मगहर, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ कीर्तिलता, मणिमंजरा नाटिका, गंगावाक्यावली, भूपरिक्रमा आदि
भाषा संस्कृत, अवहट्ट और मैथिली
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
विद्यापति की रचनाएँ

आजु नाथ एक व्रत मोहि सुख लागत हे ।
तोहे सिव धरि नट वेष कि डमरू बजाएव हे ।
भल न कहल गौरा रउरा आजु सु नाचब हे ।
सदा सोच मोहि होत कवन विधि बांचव हे ।
जे जे सोच मोहि होत कहा समुझाएव हे ।
रउरा जगत् के नाथ कवन सोच लागएव हे ।
नाग ससरि भूमि खसत पुहुमि लोटायत हे ।
कार्तिक पोसल मजूर सेहो धरि खायत हे ।
अमिय चुइ भूमि खसत बघम्बर जागत हे ।
होत बघम्बर बाघ बसहा धरि खायत हे ।
टूटी खसत रुदराछ मसान जगावत हे ।
गौरी कहँ दु:ख होत विद्यापति गावत हे ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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