वैदेही वनवास चतुर्थ सर्ग: Difference between revisions
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अपने हित साधन की ललकों में पड़े। | अपने हित साधन की ललकों में पड़े। | ||
अहित लोक लालों के लोगों ने किए॥ | अहित लोक लालों के लोगों ने किए॥ | ||
प्राणिमात्र के | प्राणिमात्र के दु:ख को भव-परिताप को। | ||
तृण गिनता है मानव निज सुख के लिए॥34॥ | तृण गिनता है मानव निज सुख के लिए॥34॥ | ||
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लोकोत्तर है आपकी सहनशीलता॥ | लोकोत्तर है आपकी सहनशीलता॥ | ||
है अपूर्व आदर्श लोकहित का जनक। | है अपूर्व आदर्श लोकहित का जनक। | ||
है | है महान् भवदीय नीति-मर्मज्ञता॥49॥ | ||
आप पुरुष हैं नृप व्रत पालन निरत हैं। | आप पुरुष हैं नृप व्रत पालन निरत हैं। | ||
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सब बातें कान्ता को बतला दीजिए॥ | सब बातें कान्ता को बतला दीजिए॥ | ||
स्वयं कहेगी वह पतिप्राणा आप से। | स्वयं कहेगी वह पतिप्राणा आप से। | ||
लोकाराधन में | लोकाराधन में विलम्ब मत कीजिए॥59॥ | ||
सती-शिरोमणि पति-परायणा पूत-धी। | सती-शिरोमणि पति-परायणा पूत-धी। |
Latest revision as of 09:06, 10 February 2021
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अवधपुरी के निकट मनोरम-भूमि में। |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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