वैदेही वनवास षष्ठ सर्ग: Difference between revisions
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कौन यों कलपने लगती है॥28॥ | कौन यों कलपने लगती है॥28॥ | ||
बिना बुलाए मेरा | बिना बुलाए मेरा दु:ख सुन। | ||
कौन दौड़ती आ जाती थी॥ | कौन दौड़ती आ जाती थी॥ | ||
पास बैठकर कितनी रातें। | पास बैठकर कितनी रातें। | ||
जगकर कौन बिता जाती थी॥29॥ | जगकर कौन बिता जाती थी॥29॥ | ||
मेरा क्या दासी का | मेरा क्या दासी का दु:ख भी। | ||
तुम देखने नहीं पाती थीं। | तुम देखने नहीं पाती थीं। | ||
भगिनी के समान ही उसकी। | भगिनी के समान ही उसकी। | ||
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पग-वन्दन कर जनक-नन्दिनी विदा हुईं तब॥53॥ | पग-वन्दन कर जनक-नन्दिनी विदा हुईं तब॥53॥ | ||
छन्द : सखी | '''छन्द : सखी''' | ||
जब घर आई तब देखा। | जब घर आई तब देखा। |
Latest revision as of 14:02, 2 June 2017
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प्रवहमान प्रात:-समीर था। |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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