वैदेही वनवास नवम सर्ग: Difference between revisions
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इसीलिए उनके अभाव में आज दिन। | इसीलिए उनके अभाव में आज दिन। | ||
नहीं नगर में ही | नहीं नगर में ही दु:ख की धारा बही॥ | ||
उदासीनता है कह रही उदास हो। | उदासीनता है कह रही उदास हो। | ||
राज-भवन भी रहा न राज-भवन वही॥35॥ | राज-भवन भी रहा न राज-भवन वही॥35॥ | ||
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अभी गान जो गाया है उद्विग्न बन॥ | अभी गान जो गाया है उद्विग्न बन॥ | ||
अहह भरा है उसमें कितना करुण-रस। | अहह भरा है उसमें कितना करुण-रस। | ||
वह है राज-भवन | वह है राज-भवन दु:ख का अविकल-कथन॥36॥ | ||
गृहजन परिजन पुरजन की तो बात क्या। | गृहजन परिजन पुरजन की तो बात क्या। | ||
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क्योंकि यही सहधार्मिणी परम धर्म था॥69॥ | क्योंकि यही सहधार्मिणी परम धर्म था॥69॥ | ||
कितने सह साँसतें बहुत | कितने सह साँसतें बहुत दु:ख भोगते। | ||
कितने पिसते पड़ प्रकोप तलवों तले॥ | कितने पिसते पड़ प्रकोप तलवों तले॥ | ||
दमन-चक्र यदि चलता तो बहता लहू। | दमन-चक्र यदि चलता तो बहता लहू। | ||
Line 392: | Line 392: | ||
मेरा उर भी इससे मथित अपार है॥ | मेरा उर भी इससे मथित अपार है॥ | ||
किन्तु इसी अवसर पर आश्रम में गमन। | किन्तु इसी अवसर पर आश्रम में गमन। | ||
दोनों के | दोनों के दु:ख का उत्तम-प्रतिकार है॥72॥ | ||
जब से सम्बन्धित हम दोनों हुए हैं। | जब से सम्बन्धित हम दोनों हुए हैं। |
Latest revision as of 14:03, 2 June 2017
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था संध्या का समय भवन मणिगण दमक। |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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