प्रियप्रवास पंचम सर्ग: Difference between revisions
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|पाठ 1= पंचम | |पाठ 1= पंचम | ||
|शीर्षक 2= छंद | |शीर्षक 2= छंद | ||
|पाठ 2= | |पाठ 2=द्रुतविलम्बित, मन्दाक्रान्ता, [[मालिनी छन्द|मालिनी]], वसन्ततिलका | ||
|बाहरी कड़ियाँ= | |बाहरी कड़ियाँ= | ||
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फूलों-पत्तों सकल पर हैं वारि बूँदें दिखातीं। | फूलों-पत्तों सकल पर हैं वारि बूँदें दिखातीं। | ||
रोते हैं या विटप सब यों ऑंसुओं को दिखा के। | रोते हैं या विटप सब यों ऑंसुओं को दिखा के। | ||
रोई थी जो रजनि | रोई थी जो रजनि दु:ख से नंद की कामिनी के। | ||
ये बूँदें हैं, निपतित हुईं या उसी के दृगों से॥5॥ | ये बूँदें हैं, निपतित हुईं या उसी के दृगों से॥5॥ | ||
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तममयी करके ब्रजभूमि को॥11॥ | तममयी करके ब्रजभूमि को॥11॥ | ||
मुख-मलीन किये | मुख-मलीन किये दु:ख में पगे। | ||
अमित-मानव गोकुल ग्राम के। | अमित-मानव गोकुल ग्राम के। | ||
तब स-दार स-बालक-बालिका। | तब स-दार स-बालक-बालिका। | ||
Line 236: | Line 236: | ||
आवेगों के सहित बढ़ता देख संताप-सिंधु। | आवेगों के सहित बढ़ता देख संताप-सिंधु। | ||
धीरे-धीरे ब्रज-नृपति से खिन्न अक्रूर बोले। | धीरे-धीरे ब्रज-नृपति से खिन्न अक्रूर बोले। | ||
देखा जाता ब्रज | देखा जाता ब्रज दु:ख नहीं शोक है वृध्दि पाता। | ||
आज्ञा देवें जननि पग छू यान पै श्याम बैठें॥42॥ | आज्ञा देवें जननि पग छू यान पै श्याम बैठें॥42॥ | ||
Line 246: | Line 246: | ||
दोनों प्यारे कुँवरवर के यों बिदा माँगते ही। | दोनों प्यारे कुँवरवर के यों बिदा माँगते ही। | ||
रोके ऑंसू जननि दृग में एक ही साथ आयें। | रोके ऑंसू जननि दृग में एक ही साथ आयें। | ||
धीरे बोलीं परम | धीरे बोलीं परम दु:ख से जीवनाधार जाओ। | ||
दोनों भैया विधुमुख हमें लौट आके दिखाओ॥44॥ | दोनों भैया विधुमुख हमें लौट आके दिखाओ॥44॥ | ||
Line 319: | Line 319: | ||
यदि तनिक कुमारों को हुई बेकली थी। | यदि तनिक कुमारों को हुई बेकली थी। | ||
यह हृदय हमारा भग्न कैसे न होगा। | यह हृदय हमारा भग्न कैसे न होगा। | ||
यदि कुछ | यदि कुछ दु:ख होगा बालकों को हमारे॥58॥ | ||
कब शिशिर निशा के शीत को शीत जाना। | कब शिशिर निशा के शीत को शीत जाना। | ||
Line 349: | Line 349: | ||
आविर्भूता गगन-तल में हो रही है निराशा। | आविर्भूता गगन-तल में हो रही है निराशा। | ||
आशाओं में प्रकट | आशाओं में प्रकट दु:ख की मुर्तियाँ हो रही हैं। | ||
ऐसा जी में ब्रज-दुख-दशा देख के था समाता। | ऐसा जी में ब्रज-दुख-दशा देख के था समाता। | ||
भू-छिद्रों से विपुल करुणा-धार है फूटती सी॥64॥ | भू-छिद्रों से विपुल करुणा-धार है फूटती सी॥64॥ | ||
Line 425: | Line 425: | ||
'''द्रुतविलम्बित छन्द''' | '''द्रुतविलम्बित छन्द''' | ||
तदुपरान्त महा | तदुपरान्त महा दु:ख में पगी। | ||
बहु विलोचन वारि विमोचती। | बहु विलोचन वारि विमोचती। | ||
महरि को लख गेह सिधारती। | महरि को लख गेह सिधारती। |
Latest revision as of 09:06, 10 February 2021
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तारे डूबे तम टल गया छा गई व्योम-लाली। |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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