वसन्ततिलका छन्द: Difference between revisions

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<poem>हे हेमकार पर दुःख-विचार-मूढ
<poem>हे हेमकार पर दुःख-विचार-मूढ
किं मां मुहुः क्षिपसि वार-शतानि वह्नौ।
किं माँ मुहुः क्षिपसि वार-शतानि वह्नौ।
सन्दीप्यते मयि तु सुप्रगुणातिरेको-
सन्दीप्यते मयि तु सुप्रगुणातिरेको-
लाभः परं तव मुखे खलु भस्मपातः॥</poem>
लाभः परं तव मुखे खलु भस्मपातः॥</poem>

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वसन्ततिलका छन्द सम वर्ण वृत्त छन्द है। यह चौदह वर्णों वाला छन्द है। 'तगण', 'भगण', 'जगण', 'जगण' और दो गुरुओं के क्रम से इसका प्रत्येक चरण बनता है।[1] पद्य में इसका लक्षण तथा उदाहरण इस प्रकार है-

उक्ता वसन्ततिलका तभजाः जगौ गः।

उदाहरण-

ऽ   ऽ । ऽ ।   । ।   ऽ ।   । ऽ ।   ऽ ऽ

हे हेमकार पर दुःख-विचार-मूढ
किं माँ मुहुः क्षिपसि वार-शतानि वह्नौ।
सन्दीप्यते मयि तु सुप्रगुणातिरेको-
लाभः परं तव मुखे खलु भस्मपातः॥


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वसन्ततिलका (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 05 जनवरी, 2014।

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  1. REDIRECT साँचा:साहित्यिक शब्दावली