आईएनएस चक्र 2: Difference between revisions
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*भारतीय नौसेना में आइएनएस चक्र का शामिल होना हिंद महासागर में उसकी ताकत को बड़े पैमाने पर बढ़ायेगा। इसको एक सौ कर्मियों की सहायता से पांच हजार किलोमीटर दूर रूस के व्लादिवोस्तक के रास्ते [[जापान]], [[चीन]], फिलीपींस और इंडोनेशिया के समुद्र तल से होते हुए गोपनीय रास्ते से यहाँ लाया गया। यही इसकी ताकत और टिकाऊ क्षमता का पहला प्रदर्शन है। | *भारतीय नौसेना में आइएनएस चक्र का शामिल होना हिंद महासागर में उसकी ताकत को बड़े पैमाने पर बढ़ायेगा। इसको एक सौ कर्मियों की सहायता से पांच हजार किलोमीटर दूर रूस के व्लादिवोस्तक के रास्ते [[जापान]], [[चीन]], फिलीपींस और इंडोनेशिया के समुद्र तल से होते हुए गोपनीय रास्ते से यहाँ लाया गया। यही इसकी ताकत और टिकाऊ क्षमता का पहला प्रदर्शन है। | ||
*इस पनडुब्बी को [[विशाखापत्तनम]] में तैनात किया गया है। इसके रास्ते को गोपनीय रखा गया था, चक्रव्यूह सामरिक मामलों के विशेषज्ञ रियर एडमिरल<ref>सेवानिवृत्त</ref> राजा मेनन का कहना है, 'चक्र ऐसी तकनीकी से लैस है जो शक्ति संतुलन को निश्चित तौर पर हमारे पक्ष में झुकाती है, लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि हमें ऐसी आठ पनडुब्बियों की | *इस पनडुब्बी को [[विशाखापत्तनम]] में तैनात किया गया है। इसके रास्ते को गोपनीय रखा गया था, चक्रव्यूह सामरिक मामलों के विशेषज्ञ रियर एडमिरल<ref>सेवानिवृत्त</ref> राजा मेनन का कहना है, 'चक्र ऐसी तकनीकी से लैस है जो शक्ति संतुलन को निश्चित तौर पर हमारे पक्ष में झुकाती है, लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि हमें ऐसी आठ पनडुब्बियों की ज़रूरत है, जबकि हमें सिर्फ एक ही मिल पायी है।’ इस पनडुब्बी में एक परमाणु रिएक्टर लगा हुआ है, जिससे इसे जबरदस्त ऊर्जा प्राप्त होती है लेकिन यह परमाणु हथियारों को ढोने के काम में नहीं आती है। | ||
*यह भारतीय नौसेना के लिये परमाणु निषेध के काम में नहीं आने वाली है, इस कमी को पूरा करने के लिए | *यह भारतीय नौसेना के लिये परमाणु निषेध के काम में नहीं आने वाली है, इस कमी को पूरा करने के लिए ज़रूरी है कि ऐसी पनडुब्बी हो जो नाभिकीय हथियार से युक्त बैलिस्टिक मिसाइलों के परिवहन में काम आ सके, देश में ही निर्मित 6,000 टन की अरिहंत श्रेणी वाली नाभिकीय शीर्षयुक्त बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी<ref>एसएसबीएन</ref> इस कार्य में सक्षम है, लेकिन इसे अभी नौसेना को सौंपे जाने में दो [[वर्ष]] का समय लगेगा क्योंकि यह अभी परीक्षण के चरण में है। | ||
*नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में प्रोफेसर ब्रह्म चेलानी के | *नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में प्रोफेसर ब्रह्म चेलानी के मुताबिक़, ‘चक्र के आने से भारतीय नौसेना को नाभिकीय ऊर्जा चलित पनडुब्बी चलाने का अभ्यास हो जायगा, जिससे वह एसएसबीएन को संचालित करने की तैयारी कर सकेगी।’ | ||
*आईएनएस चक्र 2 का बुनियादी काम एसएसबीएन के लिये कर्मिकों को प्रशिक्षित करना है। अधिकारियों के | *आईएनएस चक्र 2 का बुनियादी काम एसएसबीएन के लिये कर्मिकों को प्रशिक्षित करना है। अधिकारियों के मुताबिक़ इसकी अहम भूमिका हिंद महासागर, [[अरब सागर]] और [[बंगाल की खाड़ी]] के इर्द-गिर्द दूसरे देशों के जहाजों के प्रवेश पर निगरानी रखना होगी। यह पनडुब्बी दुश्मनों के लड़ाकू जहाज को क्रूज मिसाइलों और तारपीडो का हमला करके रोक भी सकती है क्योंकि इसे किसी भी रेंज की मिसाइलें दागने के लिये बार-बार ईंधन की ज़रूरत नहीं होती। | ||
Latest revision as of 10:04, 11 February 2021
आईएनएस चक्र 2
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विवरण | आइएनएस चक्र 2 हिंद महासागर में चीनी नौसेना के प्रवेश का जवाब देने के लिये भारतीय नौसेना के पास अब यह इकलौती सबसे बड़ी ताकत है। |
निर्माण | रूस |
भारतीय सेना में शामिल | 4 अप्रैल, 2012 |
संबंधित लेख | पनडुब्बी, भारतीय सेना, थल सेना, वायु सेना, नौसेना |
अन्य जानकारी | आईएनएस चक्र का बुनियादी काम एसएसबीएन के लिये कर्मिकों को प्रशिक्षित करना है। अधिकारियों के मुताबिक़ इसकी अहम भूमिका हिंद महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के इर्द-गिर्द दूसरे देशों के जहाजों के प्रवेश पर निगरानी रखना होगी। |
अद्यतन | 13:57, 3 अगस्त 2016 (IST)
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आइएनएस चक्र 2 रूस निर्मित अकुला-2 श्रेणी की हमलावर पनडुब्बी है। इसे 4 अप्रैल, 2012 भारतीय सेना में शामिल किया गया। हिंद महासागर में चीनी नौसेना के प्रवेश का जवाब देने के लिये भारतीय नौसेना के पास अब यह इकलौती सबसे बड़ी ताकत है। भारत दुनिया का छठा देश है, जिसके पास नाभिकीय ऊर्जा से चलने वाली अपनी पनडुब्बी है।[1]
- भारतीय नौसेना में आइएनएस चक्र का शामिल होना हिंद महासागर में उसकी ताकत को बड़े पैमाने पर बढ़ायेगा। इसको एक सौ कर्मियों की सहायता से पांच हजार किलोमीटर दूर रूस के व्लादिवोस्तक के रास्ते जापान, चीन, फिलीपींस और इंडोनेशिया के समुद्र तल से होते हुए गोपनीय रास्ते से यहाँ लाया गया। यही इसकी ताकत और टिकाऊ क्षमता का पहला प्रदर्शन है।
- इस पनडुब्बी को विशाखापत्तनम में तैनात किया गया है। इसके रास्ते को गोपनीय रखा गया था, चक्रव्यूह सामरिक मामलों के विशेषज्ञ रियर एडमिरल[2] राजा मेनन का कहना है, 'चक्र ऐसी तकनीकी से लैस है जो शक्ति संतुलन को निश्चित तौर पर हमारे पक्ष में झुकाती है, लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि हमें ऐसी आठ पनडुब्बियों की ज़रूरत है, जबकि हमें सिर्फ एक ही मिल पायी है।’ इस पनडुब्बी में एक परमाणु रिएक्टर लगा हुआ है, जिससे इसे जबरदस्त ऊर्जा प्राप्त होती है लेकिन यह परमाणु हथियारों को ढोने के काम में नहीं आती है।
- यह भारतीय नौसेना के लिये परमाणु निषेध के काम में नहीं आने वाली है, इस कमी को पूरा करने के लिए ज़रूरी है कि ऐसी पनडुब्बी हो जो नाभिकीय हथियार से युक्त बैलिस्टिक मिसाइलों के परिवहन में काम आ सके, देश में ही निर्मित 6,000 टन की अरिहंत श्रेणी वाली नाभिकीय शीर्षयुक्त बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी[3] इस कार्य में सक्षम है, लेकिन इसे अभी नौसेना को सौंपे जाने में दो वर्ष का समय लगेगा क्योंकि यह अभी परीक्षण के चरण में है।
- नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में प्रोफेसर ब्रह्म चेलानी के मुताबिक़, ‘चक्र के आने से भारतीय नौसेना को नाभिकीय ऊर्जा चलित पनडुब्बी चलाने का अभ्यास हो जायगा, जिससे वह एसएसबीएन को संचालित करने की तैयारी कर सकेगी।’
- आईएनएस चक्र 2 का बुनियादी काम एसएसबीएन के लिये कर्मिकों को प्रशिक्षित करना है। अधिकारियों के मुताबिक़ इसकी अहम भूमिका हिंद महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के इर्द-गिर्द दूसरे देशों के जहाजों के प्रवेश पर निगरानी रखना होगी। यह पनडुब्बी दुश्मनों के लड़ाकू जहाज को क्रूज मिसाइलों और तारपीडो का हमला करके रोक भी सकती है क्योंकि इसे किसी भी रेंज की मिसाइलें दागने के लिये बार-बार ईंधन की ज़रूरत नहीं होती।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ चक्र से मिली भारतीय नौसेना को मारक शक्ति (हिन्दी) आज तक। अभिगमन तिथि: 3 अगस्त, 2016।
- ↑ सेवानिवृत्त
- ↑ एसएसबीएन
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