आईएनएस विक्रांत: Difference between revisions
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*[[2012]] तक [[मुंबई]] में बतौर म्यूज़ियम रखा गया था। | *[[2012]] तक [[मुंबई]] में बतौर म्यूज़ियम रखा गया था। | ||
*[[अप्रैल]], [[2014]] में सरकार ने इस पोत को डिस्मेंटल कर कबाड़े में बेचने का फैसला किया, जिसका | *[[अप्रैल]], [[2014]] में सरकार ने इस पोत को डिस्मेंटल कर कबाड़े में बेचने का फैसला किया, जिसका काफ़ी विरोध हुआ, इसके पश्चात् एक नीलामी में 60 करोड़ रुपये में शिप ब्रेकिंग कंपनी आईबी कमर्शियल्स को बेच दिया गया। | ||
Latest revision as of 11:02, 5 July 2017
आईएनएस विक्रांत
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विवरण | यह भारतीय नौसेना का पहला विमान वाहक पोत था। ये मैजेस्टिक श्रेणी का विमान वाहक पोत था, जिसको सन 1961 ई. में नौसेना में शामिल किया गया था। |
अन्य नाम | एचएमएस हरक्युलस |
लम्बाई | 260 मीटर |
चौड़ाई | 60 मीटर |
भारतीय नौसेना में शामिल | सन 1961 ई. |
सेवानिवृत | 31 जनवरी, 1997 |
नीलामी | अप्रैल, 2014- 60 करोड़ रुपये |
संबंधित लेख | पनडुब्बी, भारतीय सेना, थल सेना, वायु सेना, नौसेना, आईएनएस चक्र 2, विमान वाहक पोत, आईएनएस विक्रमादित्य, आईएनएस कोलकाता, आईएनएस विराट |
अन्य जानकारी | आईएनएस विक्रांत ने सन 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान की नौसेना की घेराबंदी में अहम भूमिका निभाई थी। |
आईएनएस विक्रांत (अंग्रेज़ी:Indian Naval Submarine Vikrant) भारतीय नौसेना का पहला विमान वाहक पोत था। भारत ने इसे ब्रिटेन के रॉयल नेवी से वर्ष 1957 में ख़रीदा था। इसे एचएमएस हरक्युलस के नाम से भी जाना जाता था। एचएमएस हरक्युलस के नाम से जाने वाले आईएनएस विक्रांत को रॉयल नेवी ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान तैयार किया था।[1]
- विक्रांत का यह नाम संस्कृत के 'विक्रांता' से लिया गया था, जिसका मतलब होता है 'हदें पार करना'।
- ये मैजेस्टिक श्रेणी का विमान वाहक पोत था, जिसको सन 1961 ई. में नौसेना में शामिल किया गया था।
- इस पोत की लम्बाई 260 मीटर तथा चौड़ाई 60 मीटर है।
- आईएनएस विक्रांत ने सन 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान की नौसेना की घेराबंदी में अहम भूमिका निभाई थी।
- बांग्लादेश को आज़ाद करने के अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका के कारण इससे जुड़े अधिकारियों को दो महावीर चक्र और 12 वीर चक्र मिले।
- कई दिग्गज नौसैनिकों और वायुयान चालकों ने इस पोत पर प्रशिक्षण किया, पूर्व नौसैनिक प्रमुख एडमिरल आरएच तहिलयानी पोत के डेक पर हवाई जहाज उतारने वाले पहले भारतीय थे।
- 36 वर्ष की सर्विस के बाद 31 जनवरी, 1997 में ये कहते हुए इसकी सेवा समाप्त कर दी गई कि पोत का रख-रखाव संभव नहीं है।[2]
- 2012 तक मुंबई में बतौर म्यूज़ियम रखा गया था।
- अप्रैल, 2014 में सरकार ने इस पोत को डिस्मेंटल कर कबाड़े में बेचने का फैसला किया, जिसका काफ़ी विरोध हुआ, इसके पश्चात् एक नीलामी में 60 करोड़ रुपये में शिप ब्रेकिंग कंपनी आईबी कमर्शियल्स को बेच दिया गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख