वैदेही वनवास प्रथम सर्ग: Difference between revisions
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तो तरुओं पर लसे विहरते आते जाते। | तो तरुओं पर लसे विहरते आते जाते। | ||
रंग विरंगे विहग-वृन्द कम नहीं लुभाते॥ | रंग विरंगे विहग-वृन्द कम नहीं लुभाते॥ | ||
सरिता की | सरिता की उज्ज्वलता तरुचय की हरियाली। | ||
रखती है छबि दिखा मंजुता-मुख की लाली॥20॥ | रखती है छबि दिखा मंजुता-मुख की लाली॥20॥ | ||
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कुछ क्षण में उस स्वर्ग-सुन्दरी का जल जाना। | कुछ क्षण में उस स्वर्ग-सुन्दरी का जल जाना। | ||
मिट्टी में अपना | मिट्टी में अपना महान् सौन्दर्य मिलाना॥ | ||
बड़ी दु:ख-दायिनी मर्म-वेधी-बातें हैं। | बड़ी दु:ख-दायिनी मर्म-वेधी-बातें हैं। | ||
जिनको कहते खड़े रोंगटे हो जाते हैं॥45॥ | जिनको कहते खड़े रोंगटे हो जाते हैं॥45॥ |
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लोक-रंजिनी उषा-सुन्दरी रंजन-रत थी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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