प्रियप्रवास चतुर्थ सर्ग: Difference between revisions
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|पाठ 1= चतुर्थ | |पाठ 1= चतुर्थ | ||
|शीर्षक 2= छंद | |शीर्षक 2= छंद | ||
|पाठ 2= | |पाठ 2=द्रुतविलम्बित, [[मालिनी छन्द|मालिनी]],शार्दूल-विक्रीड़ित | ||
|बाहरी कड़ियाँ= | |बाहरी कड़ियाँ= | ||
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प्रिय स्वजन किसी के क्या न जाते कहीं हैं। | प्रिय स्वजन किसी के क्या न जाते कहीं हैं। | ||
पर हृदय न जानें दग्ध क्यों हो रहा है। | पर हृदय न जानें दग्ध क्यों हो रहा है। | ||
सब | सब जगत् हमें है शून्य होता दिखाता॥31॥ | ||
यह सकल दिशायें आज रो सी रही हैं। | यह सकल दिशायें आज रो सी रही हैं। |
Latest revision as of 09:07, 10 February 2021
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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