प्रियप्रवास चतुर्दश सर्ग: Difference between revisions
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हाँ! भावी है परम-प्रबला दैव-इच्छा बली है। | हाँ! भावी है परम-प्रबला दैव-इच्छा बली है। | ||
होते-होते | होते-होते जगत् कितने काम ही हैं न होते। | ||
जो ऐसा ही कु-दिन ब्रज की मेदिनी मध्य आये। | जो ऐसा ही कु-दिन ब्रज की मेदिनी मध्य आये। | ||
तो थोड़ा भी हृदय-बल की गोपियो! खो न देना॥33॥ | तो थोड़ा भी हृदय-बल की गोपियो! खो न देना॥33॥ | ||
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प्रेमोन्मत्ता विपुल व्यथिता बालिका को विलोको। | प्रेमोन्मत्ता विपुल व्यथिता बालिका को विलोको। | ||
गोपों को औ विकल लख के गोपियों को पसीजो। | गोपों को औ विकल लख के गोपियों को पसीजो। | ||
ऊधो होती मृतक ब्रज की मेदिनी को | ऊधो होती मृतक ब्रज की मेदिनी को ज़िला दो॥74॥ | ||
'''वसन्ततिलका छन्द''' | '''वसन्ततिलका छन्द''' |
Latest revision as of 10:47, 5 July 2017
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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