अब्बासी: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
(''''अब्बासी''' अब्दुल त्तुलिव बिन हाशिम की संतान थे। अल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
No edit summary |
||
(5 intermediate revisions by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
'''अब्बासी''' अब्दुल त्तुलिव बिन हाशिम की संतान थे। अल अब्बास की औलाद ने खोरासान को अपना ठिकाना बनाया और उनके पौत्र मोहम्मद बिन अली ने बनी ओमय्या को जड़ से उखाड़ फेंकने की पूरी तैयारियाँ कर ली थी। वह अपने प्रयत्न में सफल रहे और 747 ई. में खोरासान में विद्रोह हुआ। बनी ओमय्या की सेना पराजित हुई। 749 ई. में अबुल अब्बास ने खिलाफत का दावा किया और अलसफाह यानी खूनी का नाम धाारण करके बनी ओमय्या के एक-एक आदमी को तलवार के घाट उतार दिया। इस कुटुंब का एक व्यक्ति अब्दुल रहमान बिन मोआविया अपनी जान बचाकर स्पेन भाग गया और करतबा में बनी ओमय्या का राज्य स्थापित कर लिया। | '''अब्बासी''' नाम से [[इतिहास]] में तीन घराने प्रसिद्ध हैं- | ||
#अब्बासी खलीफा | |||
#ईरान के शफवी बादशाह | |||
#सूदान का एक राजकुल | |||
==इतिहास== | |||
अब्बासी खलीफाओं ने [[बगदाद]] को अपनी राजधानी बनाया था। वे अब्बास बिन अब्दुल त्तुलिव बिन हाशिम की संतान थे। अल अब्बास की औलाद ने खोरासान को अपना ठिकाना बनाया और उनके पौत्र मोहम्मद बिन अली ने बनी ओमय्या को जड़ से उखाड़ फेंकने की पूरी तैयारियाँ कर ली थी। वह अपने प्रयत्न में सफल रहे और 747 ई. में खोरासान में विद्रोह हुआ। बनी ओमय्या की सेना पराजित हुई। 749 ई. में अबुल अब्बास ने खिलाफत का दावा किया और अलसफाह यानी खूनी का नाम धाारण करके बनी ओमय्या के एक-एक आदमी को तलवार के घाट उतार दिया। इस कुटुंब का एक व्यक्ति अब्दुल रहमान बिन मोआविया अपनी जान बचाकर [[स्पेन]] भाग गया और करतबा में बनी ओमय्या का राज्य स्थापित कर लिया। | |||
जबू जाफरिल मंसूर ने बगदाद को अपनी राजधानी बनाकर राजनैतिक केंद्र को पूर्व की ओर हटा लिया। इस नए घराने ने ज्ञान-विज्ञान की रक्षा में बड़ा हिस्सा लिया, परंतु इतने बड़े राज्य में एकता को केंद्रित करना आसान काम न था। 788 ई. में इद्रीस बिन अब्दुल्लाह ने मराकश में एक अलग स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया। खैरवान को भी स्वतंत्रता मिल गई। खोरासान में वहाँ के शासक ताहिर जुल मनन ने 810 ई. में खलीफा की अधीनता मानने से इनकार कर दिया और 896 ई. में [[मिस्र]] के शासक ने भी अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी। | |||
==अवनति== | |||
खलीफा अल् मोत्तसिम (833-42) ने तुर्क दासों की एक शरीर-रक्षक सेना बनाई और इस अब्बासी घराने की अवनति शुरू हुई। तुर्क दासों का बल राजनीतिक कार्यों में धीरे-धीरे बढ़ता गया। खलीफा अल मुक्तदर ने 908 ई. में मुनिस को, जाए तुर्क शरीरक्षक सेना का अध्यक्ष था, अमीरुल उमरा की उपाधि दी और उसी के साथ-साथ सारे राजनीतिक अधिकार उसे सौंप दिए। जब फातमी खानदान मिस्र में अपनी शक्ति बढ़ा रहा था, तब अब्बासी खलीफाओं के धार्मिक कार्यों को भी बड़ा धक्का पहुँचा। अब्बासी खिलाफत के पूर्वी क्षेत्र में कई स्वतंत्र राज्य बन गए, जिनमें प्रधान तुर्किस्तान में सल्जुको का था। जब तुर्की का प्रभाव बढ़ा, तब खलीफा के राज्य की हद [[बगदाद]] नगर और उसके निकटवर्ती क्षेत्र में सीमित हो गई। | |||
बगदाद पर 1258 ई. में [[हलाकू ख़ान|हलाकू]] ने आक्रमण कर अल् मोतसिम का वध कर दिया। अब्बासियों का कुटुंब तितर-बितर हो गया और लोगों ने भागकर मिस्र में शरण ली। फातिमी सुलतानों ने उन्हें खलीफा अवश्य मान लिया, मगर उनका राजनैतिक या धार्मिक मामलों में कुछ भी प्रभाव न रहा। 1517 ई. में उस्मानी तुर्क सलीम प्रथम की अधीनता में मिस्र पर आक्रमण करके शाही खानदान का अंत कर दिया गया और उससे एक एकरारनामे पर हस्ताक्षर कराए, जिसमें उसने समस्त राजनैतिक और धार्मिक अधिकार त्याग देने की घोषणा की। सलीम ने अल् मोतवक्किल को फिर मिस्र लौट जाने की आज्ञा दे दी, जहाँ पहुँचकर वह 1538 ई. में मर गया। इस कुटुंब में 27 खलीफा हुए, जिनमें हारूँनूर्रशीद और मामूनूर्रशीद के नाम विशेष प्रसिद्ध हैं।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=172 |url=}}</ref> | |||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
[[Category:प्राचीन कुल और | ==संबंधित लेख== | ||
[[Category:हिन्दी विश्वकोश]] | {{प्राचीन कुल और क़बीले}} | ||
[[Category:प्राचीन कुल और क़बीले]] | |||
[[Category:हिन्दी विश्वकोश]][[Category:इतिहास कोश]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ |
Latest revision as of 12:02, 3 November 2022
अब्बासी नाम से इतिहास में तीन घराने प्रसिद्ध हैं-
- अब्बासी खलीफा
- ईरान के शफवी बादशाह
- सूदान का एक राजकुल
इतिहास
अब्बासी खलीफाओं ने बगदाद को अपनी राजधानी बनाया था। वे अब्बास बिन अब्दुल त्तुलिव बिन हाशिम की संतान थे। अल अब्बास की औलाद ने खोरासान को अपना ठिकाना बनाया और उनके पौत्र मोहम्मद बिन अली ने बनी ओमय्या को जड़ से उखाड़ फेंकने की पूरी तैयारियाँ कर ली थी। वह अपने प्रयत्न में सफल रहे और 747 ई. में खोरासान में विद्रोह हुआ। बनी ओमय्या की सेना पराजित हुई। 749 ई. में अबुल अब्बास ने खिलाफत का दावा किया और अलसफाह यानी खूनी का नाम धाारण करके बनी ओमय्या के एक-एक आदमी को तलवार के घाट उतार दिया। इस कुटुंब का एक व्यक्ति अब्दुल रहमान बिन मोआविया अपनी जान बचाकर स्पेन भाग गया और करतबा में बनी ओमय्या का राज्य स्थापित कर लिया।
जबू जाफरिल मंसूर ने बगदाद को अपनी राजधानी बनाकर राजनैतिक केंद्र को पूर्व की ओर हटा लिया। इस नए घराने ने ज्ञान-विज्ञान की रक्षा में बड़ा हिस्सा लिया, परंतु इतने बड़े राज्य में एकता को केंद्रित करना आसान काम न था। 788 ई. में इद्रीस बिन अब्दुल्लाह ने मराकश में एक अलग स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया। खैरवान को भी स्वतंत्रता मिल गई। खोरासान में वहाँ के शासक ताहिर जुल मनन ने 810 ई. में खलीफा की अधीनता मानने से इनकार कर दिया और 896 ई. में मिस्र के शासक ने भी अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी।
अवनति
खलीफा अल् मोत्तसिम (833-42) ने तुर्क दासों की एक शरीर-रक्षक सेना बनाई और इस अब्बासी घराने की अवनति शुरू हुई। तुर्क दासों का बल राजनीतिक कार्यों में धीरे-धीरे बढ़ता गया। खलीफा अल मुक्तदर ने 908 ई. में मुनिस को, जाए तुर्क शरीरक्षक सेना का अध्यक्ष था, अमीरुल उमरा की उपाधि दी और उसी के साथ-साथ सारे राजनीतिक अधिकार उसे सौंप दिए। जब फातमी खानदान मिस्र में अपनी शक्ति बढ़ा रहा था, तब अब्बासी खलीफाओं के धार्मिक कार्यों को भी बड़ा धक्का पहुँचा। अब्बासी खिलाफत के पूर्वी क्षेत्र में कई स्वतंत्र राज्य बन गए, जिनमें प्रधान तुर्किस्तान में सल्जुको का था। जब तुर्की का प्रभाव बढ़ा, तब खलीफा के राज्य की हद बगदाद नगर और उसके निकटवर्ती क्षेत्र में सीमित हो गई।
बगदाद पर 1258 ई. में हलाकू ने आक्रमण कर अल् मोतसिम का वध कर दिया। अब्बासियों का कुटुंब तितर-बितर हो गया और लोगों ने भागकर मिस्र में शरण ली। फातिमी सुलतानों ने उन्हें खलीफा अवश्य मान लिया, मगर उनका राजनैतिक या धार्मिक मामलों में कुछ भी प्रभाव न रहा। 1517 ई. में उस्मानी तुर्क सलीम प्रथम की अधीनता में मिस्र पर आक्रमण करके शाही खानदान का अंत कर दिया गया और उससे एक एकरारनामे पर हस्ताक्षर कराए, जिसमें उसने समस्त राजनैतिक और धार्मिक अधिकार त्याग देने की घोषणा की। सलीम ने अल् मोतवक्किल को फिर मिस्र लौट जाने की आज्ञा दे दी, जहाँ पहुँचकर वह 1538 ई. में मर गया। इस कुटुंब में 27 खलीफा हुए, जिनमें हारूँनूर्रशीद और मामूनूर्रशीद के नाम विशेष प्रसिद्ध हैं।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 172 |
संबंधित लेख