विक्रमादित्य प्रथम: Difference between revisions

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*पल्लवराज नरसिंह वर्मा से युद्ध करते हुए [[पुलकेशी द्वितीय]] की मृत्यु हो गई थी, और [[वातापी कर्नाटक|वातापी]] पर भी पल्लवों का अधिकार हो गया था।  
*पल्लवराज [[नरसिंह वर्मन प्रथम]] से युद्ध करते हुए [[पुलकेशी द्वितीय]] की मृत्यु हो गई थी और [[वातापी कर्नाटक|वातापी]] पर भी पल्लवों का अधिकार हो गया था। पर इससे चालुक्यों की शक्ति का अन्त नहीं हुआ था।
*पर इससे चालुक्यों की शक्ति का अन्त नहीं हो गया।
*पुलकेशी द्वितीय की मृत्यु के बाद उसका पुत्र '''विक्रमादित्य प्रथम''', उत्तराधिकारी था।
*पुलकेशी द्वितीय की मृत्यु के बाद उसका पुत्र विक्रमादित्य प्रथम चालुक्यों का अधिपति बना।
*विक्रमादित्य अपने पिता के समान ही वीर और महात्वाकांक्षी था।
*वह अपने पिता के समान ही वीर और महात्वाकांक्षी था।  
*यह लगभग (654-55 से 680 ई.).में गद्दी पर बैठा।
*उसने न केवल वातापी को पल्लवों की अधीनता से मुक्त किया, अपितु तेरह वर्षों तक निरन्तर युद्ध करने के बाद पल्लवराज की शक्ति को बुरी तरह कुचलकर 654 ई. में [[कांची]] की भी विजय कर ली।  
*उसके सिंहासनारूढ़ होने के समय [[चोल वंश|चोलों]], [[पाण्ड्य साम्राज्य|पाण्ड्यों]] एवं केरलों ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया था।
*कांची को जीतकर उसने [[चोल वंश|चोल]], [[पांड्य साम्राज्य|पांड्य]] और [[केरल]] राज्यों पर आक्रमण किया, और उन्हें अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए विवश किया।
*विक्रमादित्य प्रथम ने न केवल वातापी को [[पल्लव वंश|पल्लवों]] की अधीनता से मुक्त किया, अपितु तेरह वर्षों तक निरन्तर युद्ध करने के बाद पल्लवराज की शक्ति को बुरी तरह कुचलकर 654 ई. में [[कांची]] की भी विजय कर ली।  
 
*उसने पल्लवों के राज्य कांची पर अधिकार कर अपने पिता की पराजय का बदला लिया था।
*उसने 'श्रीपृथ्वीवल्लभ', 'भट्टारक', 'महाराजाधिराज', 'परमेश्वर', 'रण रसिक' आदि उपाधियाँ धारण की।
*विक्रमादित्य प्रथम सम्भवतः अपने शासन काल के अन्तिम दिनों में पल्लव नरेश [[परमेश्वर वर्मन प्रथम]] से पराजित हो गया था।
*वैसे यह विजय संदिग्ध है, क्योंकि पल्लवकालीन अभिलेख परमेश्वर वर्मन की विजय तथा चालुक्यों के अभिलेख में विक्रमादित्य प्रथम की विजय का उल्लेख मिलता है। निष्कर्षतः यही अनुमान लगाया जा सकता है कि, अन्तिम रूप पल्लव ही विजयी रहे।
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Revision as of 08:52, 15 February 2011

  • पल्लवराज नरसिंह वर्मन प्रथम से युद्ध करते हुए पुलकेशी द्वितीय की मृत्यु हो गई थी और वातापी पर भी पल्लवों का अधिकार हो गया था। पर इससे चालुक्यों की शक्ति का अन्त नहीं हुआ था।
  • पुलकेशी द्वितीय की मृत्यु के बाद उसका पुत्र विक्रमादित्य प्रथम, उत्तराधिकारी था।
  • विक्रमादित्य अपने पिता के समान ही वीर और महात्वाकांक्षी था।
  • यह लगभग (654-55 से 680 ई.).में गद्दी पर बैठा।
  • उसके सिंहासनारूढ़ होने के समय चोलों, पाण्ड्यों एवं केरलों ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया था।
  • विक्रमादित्य प्रथम ने न केवल वातापी को पल्लवों की अधीनता से मुक्त किया, अपितु तेरह वर्षों तक निरन्तर युद्ध करने के बाद पल्लवराज की शक्ति को बुरी तरह कुचलकर 654 ई. में कांची की भी विजय कर ली।
  • उसने पल्लवों के राज्य कांची पर अधिकार कर अपने पिता की पराजय का बदला लिया था।
  • उसने 'श्रीपृथ्वीवल्लभ', 'भट्टारक', 'महाराजाधिराज', 'परमेश्वर', 'रण रसिक' आदि उपाधियाँ धारण की।
  • विक्रमादित्य प्रथम सम्भवतः अपने शासन काल के अन्तिम दिनों में पल्लव नरेश परमेश्वर वर्मन प्रथम से पराजित हो गया था।
  • वैसे यह विजय संदिग्ध है, क्योंकि पल्लवकालीन अभिलेख परमेश्वर वर्मन की विजय तथा चालुक्यों के अभिलेख में विक्रमादित्य प्रथम की विजय का उल्लेख मिलता है। निष्कर्षतः यही अनुमान लगाया जा सकता है कि, अन्तिम रूप पल्लव ही विजयी रहे।


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