प्रयोग:अश्वनी5: Difference between revisions
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| class="bg69" style="border:1px solid #dfc867;padding:10px; -moz-border-radius: 6px;-webkit-border-radius: 6px; border-radius: 6px;" valign="top" | <div style="padding-left:8px; background:#f9e89e; border:thin solid #dfc867;">'''ऐसा भी हुआ !!!'''</div> | | class="bg69" style="border:1px solid #dfc867;padding:10px; -moz-border-radius: 6px;-webkit-border-radius: 6px; border-radius: 6px;" valign="top" | <div style="padding-left:8px; background:#f9e89e; border:thin solid #dfc867;">'''ऐसा भी हुआ !!!'''</div> | ||
*20 हज़ार आबादी वाले एक नगर के लोगों ने स्वयं अपने नगर में आग लगा दी और अपनी स्त्रियों और बच्चों के साथ जलकर मर गए '''[[अगलस्सोई|.... और पढ़ें]]''' | * 20 हज़ार आबादी वाले एक नगर के लोगों दो हज़ार साल पहले ने स्वयं अपने नगर में आग लगा दी और अपनी स्त्रियों और बच्चों के साथ जलकर मर गए '''[[अगलस्सोई|.... और पढ़ें]]''' | ||
*मांकड़ का अंदाज-ए-आउट बना नियम | *मांकड़ का अंदाज-ए-आउट बना नियम- ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध सिडनी टेस्ट में भारतीय गेंदबाज़ [[वीनू मांकड़]] ने विपक्षी बल्लेबाज को कुछ ऐसे आउट किया कि सब दंग रह गए। '''[[क्रिकेट#मांकड़ का अंदाज-ए-आउट बना नियम|... और पढ़ें]]''' | ||
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| class="headbg43" style="border:1px solid #b1bcc3;padding:10px; -moz-border-radius: 6px;-webkit-border-radius: 6px; border-radius: 6px;" valign="top" | <div style="padding-left:8px; background:#b4bfc6; border:thin solid #b1bcc3;">'''[[सूक्ति और कहावत]]'''</div> | | class="headbg43" style="border:1px solid #b1bcc3;padding:10px; -moz-border-radius: 6px;-webkit-border-radius: 6px; border-radius: 6px;" valign="top" | <div style="padding-left:8px; background:#b4bfc6; border:thin solid #b1bcc3;">'''[[सूक्ति और कहावत]]'''</div> | ||
*जब मरने के बाद श्मशान में डाल दिए जाने पर सभी लोग समान रूप से पृथ्वी की गोद में सोते हैं, तब मूर्ख मानव इस संसार में क्यों एक दूसरे को ठगने की इच्छा करते हैं। -'''[[वेदव्यास]]''' ([[महाभारत]], स्त्रीपर्व|4|18) | |||
*हमारी उन्नति का एकमात्र उपाय यह है कि हम पहले वह कर्तव्य करें जो हमारे हाथ में है, और इस प्रकार धीरे–धीरे शक्ति संचय करते हुए क्रमशः हम सर्वोच्च अवस्था को प्राप्त कर सकते हैं। -'''[[स्वामी विवेकानन्द|विवेकानन्द]]''' (विवेकानन्द साहित्य, तृतीय खण्ड, पृ. 43) | |||
*यह मनुष्य अन्तकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग करता है, वह उस-उस को ही प्राप्त होता हैं; क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है । '''- [[गीता|श्रीमद्भागवत गीता]]''' | |||
*अनेक विद्याओं का अध्ययन करके भी जो समाज के साथ मिलकर आचरण्युक्त जीवन व्यतीत करना नहीं जानते, वे अज्ञानी ही समझे जायेंगे। - '''तिरुवल्लुवर (तिरुक्कुरल, 140)''' '''[[सूक्ति और कहावत|.... और पढ़ें]]''' | |||
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Revision as of 14:52, 9 May 2011
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