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राजा भोज ने जो विद्वानों का प्रख्यात संरक्षक था, इस नाम की एक विशाल पाठशाला बनवायी थी। इसको तोड़कर मुसलमानों ने कमाल-मौला नामक मस्जिद बनवाई। इसके फ़र्श में भोज की पाठशाला के अनेक स्लेटी पत्थर जुड़े हैं, जिन पर संस्कृत तथा महाराष्ट्री प्राकृत के अनेक अभिलेख अंकित थे। पाठशाला के खंडहरों के अनेक ऐसे पत्थर मिले हैं, जिन पर पारिजात-मंजरी और कर्मस्तोत्र नामक सम्पूर्ण काव्य उत्कीर्ण थे। | राजा भोज ने जो विद्वानों का प्रख्यात संरक्षक था, इस नाम की एक विशाल पाठशाला बनवायी थी। इसको तोड़कर मुसलमानों ने कमाल-मौला नामक मस्जिद बनवाई। इसके फ़र्श में भोज की पाठशाला के अनेक स्लेटी पत्थर जुड़े हैं, जिन पर संस्कृत तथा महाराष्ट्री प्राकृत के अनेक अभिलेख अंकित थे। पाठशाला के खंडहरों के अनेक ऐसे पत्थर मिले हैं, जिन पर पारिजात-मंजरी और कर्मस्तोत्र नामक सम्पूर्ण काव्य उत्कीर्ण थे। | ||
====लाट मस्जिद==== | ====लाट मस्जिद==== | ||
यह मस्जिद भी धारा के परमाकालीन मन्दिरों को तोड़कर उनकी सामग्री से बनी थी। इसका निर्माता दिलावर | यह मस्जिद भी धारा के परमाकालीन मन्दिरों को तोड़कर उनकी सामग्री से बनी थी। इसका निर्माता दिलावर ख़ाँ था। इनकी मृत्यु 1405 में हुई थी। | ||
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महमूद तुग़लक ने इस क़िले को 1344 ई॰ में बनवाया था। 1731 ई॰ में इस पर पवाँर राजपूतों का अधिकार हो गया था। | महमूद तुग़लक ने इस क़िले को 1344 ई॰ में बनवाया था। 1731 ई॰ में इस पर पवाँर राजपूतों का अधिकार हो गया था। |
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यह मध्यकालीन नगर, पश्चिमी मध्य प्रदेश राज्य के मालवा क्षेत्र में स्थित है। पहाड़ियों और अनेक झीलों से घिरा यह नगर विंध्याचल की उत्तरी ढलानों पर स्थित है। धार नर्मदा नदी घाटी के निकट के दर्रे में स्थित है।
इतिहास
यह एक प्राचीन नगर है, जिसकी उत्पत्ति राजा मुंज वाक्पति से जुड़ी है। दसवीं और तेरहवीं सदी के भारतीय इतिहास में धार का महत्त्वपूर्ण स्थान था। नौवीं से चौदहवीं सदी में यह परमार राजपूतों के अधीन मालवा की राजधानी था। प्रसिद्ध राजा भोज ( लगभग 1010-55 ) के शासनकाल में यह अध्ययन का विशिष्ट केंद्र था। उन्होंने इसे अत्यधिक प्रसिद्धि दिलाई। 14वीं सदी में इसे मुग़लों ने जीत लिया और 1730 में यह मराठों के क़ब्ज़े में चला गया, इसके बाद 1742 में यह मराठा सामंत आनंदराव पवार द्वारा स्थापित धार रियासत की राजधानी बना। धार की लाट मस्जिद या मीनार मस्जिद (1405) जैन मंदिरों के खंडहर पर निर्मित है। इसके नाम की उत्पत्ति एक विध्वंसित लौह स्तंभ (13बीं सदी ) के आधार पर हुई। इस स्तंभ पर एक अभिलेख है जिसमें यहाँ 1598 में शाहजहाँ अकबर के आगमन का वर्णन है। धार में कमाल मौलाना की भव्य समाधि और 14वीं या 15वीं शताब्दी में निर्मित एक मस्जिद भी है जो भोजनशाला के नाम से विख्यात है। इसके नाम की उत्पत्ति यहाँ लगे हुए संस्कृत व्याकरण के नियम संबंधी उत्कीर्णित पत्थरों से हुई। इसके ठीक उत्तर में एक 14वीं सदी का क़िला है। कहा जाता है कि इसे मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने बनवाया था। इसमें राजा का महल भी था। 'मालवा की रानी' के रूप में वर्णित धार के महलों, मंदिरों , महाविद्यालयों, रंगशालाओं और बगीचों के लिये प्रसिद्ध है। शहर में एक पुस्तकालय, अस्पताल, संगीत अकादमी और विक्रम विश्वविद्यालय ( वर्तमान देवी अहिल्या विश्वविद्यालय) से संबंध एक शासकीय महाविद्यालय भी है।
कृषि
यह एक प्रमुख कृषि केंद्र है, यहाँ के प्रमुख उद्योगों में कपास ओटाई व धुनाई, हस्तकौशल और हस्तकरघा उद्यम शामिल हैं। ज्वार-बाजरा, मक्का, दालें और कपास यहाँ की प्रमुख फ़सलें है। माही, नर्मदा व चंबल नदी प्रणाली से सिचाई की जाती है। यह सड़क और रेलमार्ग से इंदौर मउ , खंडवा और क्षेत्र के अन्य महत्त्वपूर्ण नगरों से जुड़ा एक प्रमुख कृषि केंद्र है।
स्मारक
इसकी कुछ प्राचीन स्मारकों का वर्णन इस प्रकार है:-
भोजनशाला
राजा भोज ने जो विद्वानों का प्रख्यात संरक्षक था, इस नाम की एक विशाल पाठशाला बनवायी थी। इसको तोड़कर मुसलमानों ने कमाल-मौला नामक मस्जिद बनवाई। इसके फ़र्श में भोज की पाठशाला के अनेक स्लेटी पत्थर जुड़े हैं, जिन पर संस्कृत तथा महाराष्ट्री प्राकृत के अनेक अभिलेख अंकित थे। पाठशाला के खंडहरों के अनेक ऐसे पत्थर मिले हैं, जिन पर पारिजात-मंजरी और कर्मस्तोत्र नामक सम्पूर्ण काव्य उत्कीर्ण थे।
लाट मस्जिद
यह मस्जिद भी धारा के परमाकालीन मन्दिरों को तोड़कर उनकी सामग्री से बनी थी। इसका निर्माता दिलावर ख़ाँ था। इनकी मृत्यु 1405 में हुई थी।
क़िला
महमूद तुग़लक ने इस क़िले को 1344 ई॰ में बनवाया था। 1731 ई॰ में इस पर पवाँर राजपूतों का अधिकार हो गया था।
जनसंख्या
धार नगर की जनसंख्या ( 2001) 75,472 है और कुल ज़िला की जनसंख्या 17,40,577 है।