दओजली हैडिंग: Difference between revisions
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दओजली हैडिंग का [[उत्खनन]] 1962-1963 ई. के मध्य किया गया था। दओजली हैडिंग से डेढ़ किमी पूर्व में लांटिग नदी बहती है। नव-प्रस्तरकालीन मानव ने यहाँ उपलब्ध बलुआ पत्थर व शैल का उपयोग उपकरणों को बनाने में किया था। यहाँ से प्राप्त 99 प्रतिशत उपकरण इन्हीं दोनों पत्थरों से बनाए गए हैं। यहाँ किये गए उत्खनन से लगभग 76 से.मी. मोटे आवासीय स्तर का अनावरण किया गया है। इस स्थल पर बिछी पीली सख्त [[मिट्टी]] के जमाव पर नव-प्रस्तरकालीन मानव समूह बसा था। जिसके स्थल छोड़ने के बाद कोई और आवासीय प्रमाण प्राप्त नहीं होता है। इस स्थल से प्राप्त मुख्य [[अवशेष]] पाषाण उपकरण हैं, जो क्वार्टजाईट, बलुआ पत्थर, शैल व प्रस्तरीकृत लकड़ी पर निर्मित हैं। उत्खनन से प्राप्त दो सौ से भी अधिक उपकरणों में शल्कित व घर्षित धारयुक्त उपकरण, सिल, लोढ़े, छेनी छोटी व स्कन्धयुक्त कुल्हाड़ियाँ तथा क्वार्टजाईट के गुटके हैं। | दओजली हैडिंग का [[उत्खनन]] 1962-1963 ई. के मध्य किया गया था। दओजली हैडिंग से डेढ़ किमी पूर्व में लांटिग नदी बहती है। नव-प्रस्तरकालीन मानव ने यहाँ उपलब्ध बलुआ पत्थर व शैल का उपयोग उपकरणों को बनाने में किया था। यहाँ से प्राप्त 99 प्रतिशत उपकरण इन्हीं दोनों पत्थरों से बनाए गए हैं। यहाँ किये गए उत्खनन से लगभग 76 से.मी. मोटे आवासीय स्तर का अनावरण किया गया है। इस स्थल पर बिछी पीली सख्त [[मिट्टी]] के जमाव पर नव-प्रस्तरकालीन मानव समूह बसा था। जिसके स्थल छोड़ने के बाद कोई और आवासीय प्रमाण प्राप्त नहीं होता है। इस स्थल से प्राप्त मुख्य [[अवशेष]] पाषाण उपकरण हैं, जो क्वार्टजाईट, बलुआ पत्थर, शैल व प्रस्तरीकृत लकड़ी पर निर्मित हैं। उत्खनन से प्राप्त दो सौ से भी अधिक उपकरणों में शल्कित व घर्षित धारयुक्त उपकरण, सिल, लोढ़े, छेनी छोटी व स्कन्धयुक्त कुल्हाड़ियाँ तथा क्वार्टजाईट के गुटके हैं। | ||
उत्खनन के दौरान प्राप्त मृद्भाण्डों के अवशेष छोटे टुकड़ों के रूप में छः सौ के | उत्खनन के दौरान प्राप्त मृद्भाण्डों के अवशेष छोटे टुकड़ों के रूप में छः सौ के क़रीब प्राप्त हुए हैं। इन टुकड़ों के पात्रों के आकार का अनुमान तो सम्भव नहीं है किंतु उनके निर्माण तकनीकी आदि पर प्रकाश पड़ता है। इस वर्ग में अत्यधिक संख्या डोरी-छापित पात्र खण्डों की है। ये [[सर्प]] कुण्डलीय तकनीक द्वारा हाथ से गढ़े गये हैं। उत्तर-पूर्व के पर्वतीय क्षेत्र की कुछ जनजातियों में ऐसे मृद्भाण्ड बनाने की विधा आज भी प्रचलित है। जिन पर ठप्पों से [[अलंकरण]] किया गया था। इस स्थल से ऐसे कोई उल्लेखनीय प्रमाण प्राप्त नहीं हुए हैं, जिनसे यहाँ के नव-प्रस्तरकालीन जीवन व्यवस्था अथवा आवासीय प्रवृत्ति की जानकारी ज्ञात हो सके। परंतु अप्रत्यक्ष साक्ष्यों पर आधारित परिकल्पना में झूम प्रथा से [[कृषि]] तथा मिट्टी या [[बाँस]] से निर्मित कच्ची झोंपड़ियों से निवास स्थान का अनुमान किया जा सकता है। जंगली पशु अस्थियों के आधार पर आखेट का प्रचलन प्रमाणित होता है। उत्तर-पूर्व के क्षेत्र में सबसे अधिक प्रमाण इसी पुरा स्थल से प्राप्त हुए हैं। | ||
Revision as of 11:35, 20 December 2011
दओजली हैडिंग (अंग्रेजी: Daojali Hading)असम प्रांत के कछार पर्वत के उत्तरी क्षेत्र में स्थित एक ऐतिहासिक स्थान है। दओजली हैडिंग का स्थानीय भाषा में अर्थ पक्षियों का पर्वत होता है। यह स्थल बलुए व शैली प्रस्तर निर्मित एक छोटे पर्वत पर स्थित है।
उत्खनन
दओजली हैडिंग का उत्खनन 1962-1963 ई. के मध्य किया गया था। दओजली हैडिंग से डेढ़ किमी पूर्व में लांटिग नदी बहती है। नव-प्रस्तरकालीन मानव ने यहाँ उपलब्ध बलुआ पत्थर व शैल का उपयोग उपकरणों को बनाने में किया था। यहाँ से प्राप्त 99 प्रतिशत उपकरण इन्हीं दोनों पत्थरों से बनाए गए हैं। यहाँ किये गए उत्खनन से लगभग 76 से.मी. मोटे आवासीय स्तर का अनावरण किया गया है। इस स्थल पर बिछी पीली सख्त मिट्टी के जमाव पर नव-प्रस्तरकालीन मानव समूह बसा था। जिसके स्थल छोड़ने के बाद कोई और आवासीय प्रमाण प्राप्त नहीं होता है। इस स्थल से प्राप्त मुख्य अवशेष पाषाण उपकरण हैं, जो क्वार्टजाईट, बलुआ पत्थर, शैल व प्रस्तरीकृत लकड़ी पर निर्मित हैं। उत्खनन से प्राप्त दो सौ से भी अधिक उपकरणों में शल्कित व घर्षित धारयुक्त उपकरण, सिल, लोढ़े, छेनी छोटी व स्कन्धयुक्त कुल्हाड़ियाँ तथा क्वार्टजाईट के गुटके हैं।
उत्खनन के दौरान प्राप्त मृद्भाण्डों के अवशेष छोटे टुकड़ों के रूप में छः सौ के क़रीब प्राप्त हुए हैं। इन टुकड़ों के पात्रों के आकार का अनुमान तो सम्भव नहीं है किंतु उनके निर्माण तकनीकी आदि पर प्रकाश पड़ता है। इस वर्ग में अत्यधिक संख्या डोरी-छापित पात्र खण्डों की है। ये सर्प कुण्डलीय तकनीक द्वारा हाथ से गढ़े गये हैं। उत्तर-पूर्व के पर्वतीय क्षेत्र की कुछ जनजातियों में ऐसे मृद्भाण्ड बनाने की विधा आज भी प्रचलित है। जिन पर ठप्पों से अलंकरण किया गया था। इस स्थल से ऐसे कोई उल्लेखनीय प्रमाण प्राप्त नहीं हुए हैं, जिनसे यहाँ के नव-प्रस्तरकालीन जीवन व्यवस्था अथवा आवासीय प्रवृत्ति की जानकारी ज्ञात हो सके। परंतु अप्रत्यक्ष साक्ष्यों पर आधारित परिकल्पना में झूम प्रथा से कृषि तथा मिट्टी या बाँस से निर्मित कच्ची झोंपड़ियों से निवास स्थान का अनुमान किया जा सकता है। जंगली पशु अस्थियों के आधार पर आखेट का प्रचलन प्रमाणित होता है। उत्तर-पूर्व के क्षेत्र में सबसे अधिक प्रमाण इसी पुरा स्थल से प्राप्त हुए हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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