बछेंद्री पाल: Difference between revisions

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Revision as of 13:27, 24 November 2012

बछेंद्री पाल
जन्म 24 मई, 1954 ई.
जन्म भूमि उत्तरकाशी, उत्तराखंड
खेल-क्षेत्र पर्वतारोहण
शिक्षा बी.एड
पुरस्कार-उपाधि पद्मश्री पुरस्कार
प्रसिद्धि माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली प्रथम भारतीय तथा दुनिया की 5वीं महिला।
विशेष योगदान 1984 ई. के अभियान में शामिल होकर बछेंद्री पाल ने सफलतापूर्वक एवरेस्ट पर विजय पाई और भारत की महिलाऑ को भी पर्वतारोहण के क्षेत्र में ला खड़ा किया।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी बछेंद्री पाल भारत की एक इस्पात कंपनी 'टाटा स्टील' में कार्यरत हैं, जहाँ वह चुने हुए लोगो को रोमांचक अभियानों का प्रशिक्षण देती हैं।

बछेंद्री पाल (जन्म: 24 मई 1954 ) विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली प्रथम भारतीय महिला। 'पहाड़ों की रानी' बछेंद्री पाल पर्वत शिखर एवरेस्ट की ऊंचाई को छूने वाली दुनिया की 5वीं महिला पर्वतारोही हैं। उन्होंने यह कारनामा 23 मई 1984 को दिन के 1 बजकर सात मिनट पर किया।

जीवन परिचय

बछेंद्री पाल ने उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी की पहाड़ों की गोद में सन् 1954 को जन्म लिया। भारत के उत्तराखंड राज्य के एक खेतिहर परिवार में जन्मी बछेंद्री ने बी.एड. किया। स्कूल में शिक्षिका बनने के बजाय पेशेवर पर्वतारोही का पेशा अपनाने पर बछेंद्री को परिवार और रिश्तेदारों का विरोध झेलना पड़ा।

भारतीय अभियान दल के सदस्य के रूप में माउंट एवरेस्ट पर आरोहण के कुछ ही समय बाद उन्होंने इस शिखर पर महिलाओं की एक टीम के अभियान का सफल नेतृत्व किया। 1994 में बछेंद्री ने महिलाओं के, गंगा नदी में हरिद्वार से कलकत्ता तक 2,500 किमी लंबे नौका अभियान का नेतृत्व किया। हिमालय के गलियारे में भूटान, नेपाल, लेह और सियाचिन ग्लेशियर से होते हुए कराकोरम पर्वत श्रृंखला पर समाप्त होने वाला 4,000 किमी लंबा अभियान उनके द्वारा इस दुर्गम क्षेत्र में प्रथम महिला अभियान का प्रयास था।

बछेंद्री पाल भारत की एक 'इस्पात कंपनी टाटा स्टील' में कार्यरत हैं, जहां वह चुने हुए लोगो को रोमांचक अभियानों का प्रशिक्षण देती हैं।

पर्वतारोहण का पहला मौक़ा

बछेंद्री के लिए पर्वतारोहण का पहला मौक़ा 12 साल की उम्र में आया, जब उन्होंने अपने स्कूल की सहपाठियों के साथ 400 मीटर की चढ़ाई की। यह चढ़ाई उन्होंने किसी योजनाबद्ध तरीके से नहीं की थी। दरअसल, वे स्कूल पिकनिक पर गई हुए थीं। चढ़ाई चढ़ती गईं। लेकिन तब तक शाम हो गई। जब लौटने का खयाल आया तो पता चला की उतरना सम्भव नहीं है। ज़ाहिर है, रातभर ठहरने के लिये उन के पास पूरा इंतज़ाम नहीं था। बगैर भोजन और टैंट के उन्होंने खुले आसमान के नीचे रात गुजार दी।[1]

बुलंद हौसला

मेधावी और प्रतिभाशाली होने के बावजूद उन्हें कोई अच्छा रोज़गार नहीं मिला। जो मिला वह अस्थायी, जूनियर स्तर का था और वेतन भी बहुत कम था। इस से बछेंद्री को निराशा हुई और उन्होंने नौकरी करने के बजाय 'नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग' कोर्स के लिये आवेदन कर दिया। यहाँ से बछेंद्री के जीवन को नई राह मिली। 1982 में एडवांस कैम्प के तौर पर उन्होंने गंगोत्री (6,672 मीटर) और रूदुगैरा (5,819) की चढ़ाई को पूरा किया। इस कैम्प में बछेंद्री को ब्रिगेडियर ज्ञान सिंह ने बतौर इंस्ट्रक्टर पहली नौकरी दी।[1]

एवरेस्ट अभियान

1984 में भारत का चौथा एवरेस्ट अभियान शुरू हुआ। दुनिया में अब तक सिर्फ 4 महिलाऐं एवरेस्ट की चढ़ाई में कामयाब हो पाई थीं। 1984 के इस अभियान में जो टीम बनी, उस में बछेंद्री समेत 7 महिलाओं और 11 पुरुषों को शामिल किया गया था। 1 बजे 29,028 फुट (8,848 मीटर) की ऊंचाई पर 'सागरमाथा (एवरेस्ट)' पर भारत का झंडा लहराया गया। इस के साथ एवरेस्ट पर सफलतापूर्वक क़दम रखने वाले वे दुनिया की 5वीं महिला बनीं। केंद्र सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 बछेंद्री पाल (हिन्दी) अपने विचार। अभिगमन तिथि: 20 मई, 2011

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