दीर्घ विष्णु मन्दिर मथुरा: Difference between revisions
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[[वराह पुराण]], [[नारद पुराण]], [[गर्ग संहिता]] व [[भागवत पुराण|श्रीमद् भागवत]] में इस मन्दिर के [[विष्णु]] घाट के किनारे पर होने की पुष्टि हुई है । कहा जाता है कि मूल मंदिर का अस्तित्व अब नहीं है, परंतु उपस्थित मंदिर [[बनारस]] के राजा पतनीमल द्वारा निर्मित है। इसका निर्माण भगवान [[कृष्ण]] के छर्भुजा स्वरूप को स्मरण करने व [[यमुना]] को तीर्थराज प्रयाग से बचाने हेतु किया गया था । इस मन्दिर का मूल नाम बालकृष्ण के विराट रूप को दर्शाता है जो उन्होंने [[कंस]] से युद्ध करने के लिए धरा था । | [[वराह पुराण]], [[नारद पुराण]], [[गर्ग संहिता]] व [[भागवत पुराण|श्रीमद् भागवत]] में इस मन्दिर के [[विष्णु]] घाट के किनारे पर होने की पुष्टि हुई है । कहा जाता है कि मूल मंदिर का अस्तित्व अब नहीं है, परंतु उपस्थित मंदिर [[बनारस]] के राजा पतनीमल द्वारा निर्मित है। इसका निर्माण भगवान [[कृष्ण]] के छर्भुजा स्वरूप को स्मरण करने व [[यमुना नदी|यमुना]] को तीर्थराज प्रयाग से बचाने हेतु किया गया था । इस मन्दिर का मूल नाम बालकृष्ण के विराट रूप को दर्शाता है जो उन्होंने [[कंस]] से युद्ध करने के लिए धरा था । | ||
==वास्तु== | ==वास्तु== | ||
इस मन्दिर की छत गुम्बदनुमा, आधार आयताकार व ऊँचा कुरसी आसार है । पूर्वमुखी द्वार में प्रवेश करने पर खुला हुआ आंगन दिखाई देता है । पश्चिम में जगमोहन (30’ X 30’) के साथ आंगन निर्मित है । इसे बनाने में लखोरी ईंट व चूने, लाल एवं बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। जगमोहन के ऊपर निर्मित गुम्बद पर कमल की आकृति सुगठित है । मन्दिर को क्रमबद्ध सोलह पत्तीदार दरवज़ो, अलंकृत आलों, जटिल पत्थर की जालियों और छज्जों द्वारा सुसज्जित किया गया है । | इस मन्दिर की छत गुम्बदनुमा, आधार आयताकार व ऊँचा कुरसी आसार है । पूर्वमुखी द्वार में प्रवेश करने पर खुला हुआ आंगन दिखाई देता है । पश्चिम में जगमोहन (30’ X 30’) के साथ आंगन निर्मित है । इसे बनाने में लखोरी ईंट व चूने, लाल एवं बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। जगमोहन के ऊपर निर्मित गुम्बद पर कमल की आकृति सुगठित है । मन्दिर को क्रमबद्ध सोलह पत्तीदार दरवज़ो, अलंकृत आलों, जटिल पत्थर की जालियों और छज्जों द्वारा सुसज्जित किया गया है । |
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यह मंदिर खारी कुंआ, घीया मण्डी, मथुरा में स्थित है।
इतिहास
वराह पुराण, नारद पुराण, गर्ग संहिता व श्रीमद् भागवत में इस मन्दिर के विष्णु घाट के किनारे पर होने की पुष्टि हुई है । कहा जाता है कि मूल मंदिर का अस्तित्व अब नहीं है, परंतु उपस्थित मंदिर बनारस के राजा पतनीमल द्वारा निर्मित है। इसका निर्माण भगवान कृष्ण के छर्भुजा स्वरूप को स्मरण करने व यमुना को तीर्थराज प्रयाग से बचाने हेतु किया गया था । इस मन्दिर का मूल नाम बालकृष्ण के विराट रूप को दर्शाता है जो उन्होंने कंस से युद्ध करने के लिए धरा था ।
वास्तु
इस मन्दिर की छत गुम्बदनुमा, आधार आयताकार व ऊँचा कुरसी आसार है । पूर्वमुखी द्वार में प्रवेश करने पर खुला हुआ आंगन दिखाई देता है । पश्चिम में जगमोहन (30’ X 30’) के साथ आंगन निर्मित है । इसे बनाने में लखोरी ईंट व चूने, लाल एवं बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। जगमोहन के ऊपर निर्मित गुम्बद पर कमल की आकृति सुगठित है । मन्दिर को क्रमबद्ध सोलह पत्तीदार दरवज़ो, अलंकृत आलों, जटिल पत्थर की जालियों और छज्जों द्वारा सुसज्जित किया गया है ।
वीथिका
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दीर्घ विष्णु मन्दिर, मथुरा
Dirgh Vishnu Temple, Mathura -
दीर्घ विष्णु मन्दिर, मथुरा
Dirgh Vishnu Temple, Mathura -
दीर्घ विष्णु मन्दिर, मथुरा
Dirgh Vishnu Temple, Mathura -
दीर्घ विष्णु मन्दिर, मथुरा
Dirgh Vishnu Temple, Mathura -
दीर्घ विष्णु मन्दिर, मथुरा
Dirgh Vishnu Temple, Mathura -
दीर्घ विष्णु मन्दिर, मथुरा
Dirgh Vishnu Temple, Mathura