कीर्तन: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
(भजन कीर्तन को अनुप्रेषित (रिडायरेक्ट)) |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
'''कीर्तन''' संगीतमय पूजन या सामूहिक भक्ति का स्वरूप है, जो [[पश्चिम बंगाल|बंगाल]] के [[वैष्णव संप्रदाय]] में प्रचलित है। आमतौर पर कीर्तन में एकल गायक द्वारा एक [[छंद]] गाया जाता है, जिसे उसके बाद संपूर्ण समूह [[ताल वाद्य|तालवाद्यों]] के साथ दोहराता है। कई बार [[गीत]] के स्थान पर धार्मिक कविताओं का पाठ, भगवान के नाम की पुनरावृत्ति या [[नृत्य]] भी होता है। कीर्तन के गीतों में अक्सर मानव-[[आत्मा]] और ईश्वर के संबंधों का वर्णन, [[विष्णु]] के अवतार [[कृष्ण]] और उनकी प्रेमिका [[राधा]] के संबंधों के रूप में किया जाता है। कीर्तन-संध्या कई घंटों तक चल सकती है, जिससे उसमें शामिल होने वाले कई बार धार्मिक आनंदातिरेक की अवस्था में पहुँच जाते हैं। कीर्तन को पूजा के स्वरूप के रूप में 15वीं-16वीं शताब्दी में बंगाल के रहस्यवादी [[चैतन्य महाप्रभु]] ने लोकप्रिय बनाया, जो ईश्वर के अधिक [[प्रत्यक्ष]] भावनात्मक अनुभव का लगातार प्रयास करते रहे। | |||
{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
<references/> | |||
==बाहरी कड़ियाँ== | |||
==संबंधित लेख== | |||
{{आरती स्तुति स्तोत्र}} | |||
[[Category:आरती स्तुति स्तोत्र]] | |||
[[Category:हिन्दू संस्कार]] | |||
[[Category:हिन्दू_धर्म_कोश]] | |||
[[Category:हिन्दू धर्म]] | |||
__INDEX__ |
Revision as of 12:01, 16 July 2013
कीर्तन संगीतमय पूजन या सामूहिक भक्ति का स्वरूप है, जो बंगाल के वैष्णव संप्रदाय में प्रचलित है। आमतौर पर कीर्तन में एकल गायक द्वारा एक छंद गाया जाता है, जिसे उसके बाद संपूर्ण समूह तालवाद्यों के साथ दोहराता है। कई बार गीत के स्थान पर धार्मिक कविताओं का पाठ, भगवान के नाम की पुनरावृत्ति या नृत्य भी होता है। कीर्तन के गीतों में अक्सर मानव-आत्मा और ईश्वर के संबंधों का वर्णन, विष्णु के अवतार कृष्ण और उनकी प्रेमिका राधा के संबंधों के रूप में किया जाता है। कीर्तन-संध्या कई घंटों तक चल सकती है, जिससे उसमें शामिल होने वाले कई बार धार्मिक आनंदातिरेक की अवस्था में पहुँच जाते हैं। कीर्तन को पूजा के स्वरूप के रूप में 15वीं-16वीं शताब्दी में बंगाल के रहस्यवादी चैतन्य महाप्रभु ने लोकप्रिय बनाया, जो ईश्वर के अधिक प्रत्यक्ष भावनात्मक अनुभव का लगातार प्रयास करते रहे।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख