हक़सर हवेली: Difference between revisions

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==सांस्कृतिक और राजनीतिक केंद्र==  
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सांस्कृतिक और राजनीतिक घटनाओं का प्रमुख केंद्र रही यह हवेली 1960 में बेच दी गई। तब से विभिन्न व्यक्तिगत और व्यावसायिक गतिविधियों के संचालन से गुजरती हुई यह हवेली अपने वास्तविक स्वरुप को पूर्णतः खो बैठी है, और अब बस इसके खंडहर ही इसके गौरवशाली इतिहास की दास्ताँ बयां कर रहे हैं।  
सांस्कृतिक और राजनीतिक घटनाओं का प्रमुख केंद्र रही यह हवेली 1960 में बेच दी गई। तब से विभिन्न व्यक्तिगत और व्यावसायिक गतिविधियों के संचालन से गुजरती हुई यह हवेली अपने वास्तविक स्वरुप को पूर्णतः खो बैठी है, और अब बस इसके खंडहर ही इसके गौरवशाली इतिहास की दास्ताँ बयां कर रहे हैं।  
1983 में इंदिरा गाँधी भी अपनी माँ के जन्मस्थल पर आई थीं और काफी देर पुरानी यादों को भावुकता से टटोलती रहीं। इसे विरासत स्थल जैसे स्तर देने के भी प्रयास हुए मगर स्थानीय सहभागिता न होने के कारण योजनाएं आगे नहीं बढ़ पाईं।<ref>{{cite web |url=http://ourdharohar.blogspot.in/2011/11/blog-post_04.html |title=अस्तित्व को जूझती हक़सर हवेली |accessmonthday=9 सितम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=धरोहर (ब्लॉग) |language=हिन्दी }} </ref>
1983 में इंदिरा गाँधी भी अपनी माँ के जन्मस्थल पर आई थीं और काफ़ी देर पुरानी यादों को भावुकता से टटोलती रहीं। इसे विरासत स्थल जैसे स्तर देने के भी प्रयास हुए मगर स्थानीय सहभागिता न होने के कारण योजनाएं आगे नहीं बढ़ पाईं।<ref>{{cite web |url=http://ourdharohar.blogspot.in/2011/11/blog-post_04.html |title=अस्तित्व को जूझती हक़सर हवेली |accessmonthday=9 सितम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=धरोहर (ब्लॉग) |language=हिन्दी }} </ref>


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हक़सर हवेली पुरानी दिल्ली के सीताराम बाज़ार में स्थित एक प्राचीन हवेलई है। हक़सर हवेली' में सन 1850 से 1900 ई. के बीच कश्मीरी ब्राह्मणों के कई परिवार इलाहाबाद, आगरा और पुरानी दिल्ली से आकर बसे, जिनमें कमला नेहरू के माता-पिता श्रीमती राजपति कॉल और श्री जवाहर मल कौल भी थे। इन्होंने पुरानी दिल्ली के गली कश्मीरिया और सीताराम बाज़ार के पास के इस भाग में यह हवेली बनवाई जहाँ कमला नेहरू जी का जन्म हुआ और उनका बचपन बीता। इसी हवेली में 8 फ़रवरी, 1916 को पं. जवाहरलाल नेहरू की बारात आई थी।

सांस्कृतिक और राजनीतिक केंद्र

सांस्कृतिक और राजनीतिक घटनाओं का प्रमुख केंद्र रही यह हवेली 1960 में बेच दी गई। तब से विभिन्न व्यक्तिगत और व्यावसायिक गतिविधियों के संचालन से गुजरती हुई यह हवेली अपने वास्तविक स्वरुप को पूर्णतः खो बैठी है, और अब बस इसके खंडहर ही इसके गौरवशाली इतिहास की दास्ताँ बयां कर रहे हैं। 1983 में इंदिरा गाँधी भी अपनी माँ के जन्मस्थल पर आई थीं और काफ़ी देर पुरानी यादों को भावुकता से टटोलती रहीं। इसे विरासत स्थल जैसे स्तर देने के भी प्रयास हुए मगर स्थानीय सहभागिता न होने के कारण योजनाएं आगे नहीं बढ़ पाईं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अस्तित्व को जूझती हक़सर हवेली (हिन्दी) धरोहर (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 9 सितम्बर, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

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