अमर जवान ज्योति
अमर जवान ज्योति
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विवरण | 'अमर जवान ज्योति' भारतीय स्मारक है, जिसका निर्माण भारतीय सेना के शहीद हुये जवानों को श्रृद्धाजंलि देने हेतु किया गया है। |
निर्माण | दिसंबर, 1971 |
उद्घाटन | 26 जनवरी, 1972 |
उद्घाटनकर्ता | इंदिरा गाँधी |
मुख्य तथ्य | पहले 'अमर जवान ज्योति' पर शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी जाती थी, किन्तु 26 जनवरी, 2020 से शहीद सैनिकों को श्रद्धांजलि 'राष्ट्रीय युद्ध स्मारक' पर दी जाती है, जिसका उद्घाटन 25 फ़रवरी, 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। |
अन्य जानकारी | अमर जवान ज्योति स्मारक के अगल-बगल चार कलश रखे गयें हैं। इसमें से एक में 1971 से पूरे साल, 24 घंटे अग्नि प्रज्वलित रहती है। |
अमर जवान ज्योति (अंग्रेज़ी: Amar Jawan Jyoti) एक भारतीय स्मारक है, जिसका निर्माण 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद शहीद हुए भारतीय सेना के जवानों को स्मरण करते हुए किया गया। सन 1971 में भारत-पाक युद्ध के बाद इंदिरा गांधी ने 'अमर जवान ज्योति' को इंडिया गेट के निचे बनवाने में आर्थिक सहायता की थी। 26 जनवरी, 1972 को (23वाँ भारतीय गणतंत्र दिवस) इंदिरा गाँधी ने अधिकारिक रूप से इस स्मारक का उद्घाटन किया था। सन 1972 से हर साल गणतंत्र दिवस के दिन परेड से पहले, भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, थल सेना, वायु सेना और नौसेना के प्रमुख और सभी मुख्य अतिथि अमर जवान ज्योति पर पुष्पांजलि अर्पित करते हैं, जिससे युद्ध में शहीद हुये सैनिको को श्रद्धांजलि अर्पण कर सकें। अमर जवान ज्योति सप्ताह के सातों दिन लगातार 24 घंटे प्रज्वलित रहती है।
इतिहास
जब इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री थीं, उस समय पाकिस्तान और बांग्लादेश एक ही थे। पाकिस्तान की यह मांग थी कि बांग्लादेश की राष्ट्रीय भाषा उर्दू हो लेकिन बांग्लादेश को यह मंज़ूर नहीं था। वे बंगाली भाषा को अपनी राष्ट्रभाषा बनाना चाहते थे। बांग्लादेश में पाकिस्तान ने कत्लेआम मचा दिया और इसे रोकने और पूर्वी पाकिस्तान कहे जाने वाले बांग्लादेश को मुक्त कराने के लिए भारत ने अपने सैनिक भेजे और 3 दिसम्बर से लेकर 16 दिसंबर, 1971 तक यह (इंडो-पाक) युद्ध चला, जिसमें भारत के हज़ारों सैनिक शहीद हुये और इंदिरा गांधी की कूटनीतिक समझ से बांग्लादेश को पाकिस्तान से मुक्त करा लिया गया।
महत्त्व
किसी भी जवान के शहीद होने से बड़ा दुःख और क्षति कोई और नहीं हो सकता। उनकी कुर्बानी की तुलना दुनिया की किसी भी चीज़ से नहीं की जा सकती। एक साधू कठिन तप करता है और सिद्धियाँ प्राप्त करता है, लेकिन एक सैनिक साधू से कई गुना अधिक तप करता है और बदले में कुछ पाने की लालच के जगह आजीवन समाज को, देश को देता ही रहता है। भारतीय सैनिकों के शहीद हो जाने पर पूरे भारतवासियों का ह्रदय दु:खी था। इसी दुःख की घड़ी में इंदिरा गांधी ने 'अमर जवान ज्योति' शहीद स्मारक बनाने की बात रखी और सभी ने इसकी सराहना की। दिसम्बर 1971 में उन्होंने इस स्मारक के निर्माण के लिए आर्थिक सहायता भी दी और यह शहीद स्मारक 'अमर जवान ज्योति' का निर्माण हुआ।
प्रतीक
अमर जवान ज्योति स्मारक नई दिल्ली में राजपथ पर इंडिया गेट के नीचे बनाया गया है। इस स्मारक पर संगमरमर का चबूतरा बना हुआ है, जिस पर स्वर्ण अक्षरों में अमर जवान लिखा हुआ है। स्मारक के शीर्ष पर L1A1 आत्म-लोडिंग ऑटोमेटिक राइफल भी लगी हुई है, जिसके बैरल पर किसी अनजान फौजी का हेलमेट लटका हुआ है।
राइफल का अर्थ है- 'स्वयं का तन-मन और क्षमता'। उस पर रखे हुए हेलमेट का अर्थ है- 'जीवन, प्राण' अर्थात समाज और राष्ट्र पर भारतीय सेना अपना तन, मन और जीवन बिना स्वार्थ के अर्पण करती है।
स्मारक के अगल-बगल चार कलश रखे गयें हैं। इसमें से एक में 1971 से पूरे साल, 24 घंटे अग्नि प्रज्वलित रहती है। पहले यह ज्योति एलपीजी गैस के प्रयोग से जलती थी, लेकिन 2006 से इस ज्योति को सीएनजी गैस से प्रज्वलित किया जाने लगा। सिर्फ 26 जनवरी के दिन ही अमर जवान ज्योति वाले चारों कलशों को एक साथ प्रज्वलित किया जाता है। तीनों सेना और पूरा भारत सम्मान से शीष झुकाता है।
देखरेख और सम्मान
अमर जवान ज्योति के कारण इस स्थान का नाम 'अमर जवान ज्योति' दिया गया। इस शहीद स्मारक की देखरेख के लिए हर वक़्त एक व्यक्ति मौजूद होता है। 26 जनवरी, 1972 को इंदिरा गांधी ने इस स्मारक का उद्घाटन किया था। सभी राजनेताओं की उपस्थिति में शहीदों के सम्मान में नारे लगवाये गए। तभी से हर साल 26 जनवरी की परेड से पहले देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा तीनों सेनाओं के प्रमुख और सभी मुख्य अतिथि अमर जवान ज्योति पर पुष्पांजलि अप्रित करते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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