संध्या -अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध': Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Ayodhya-Singh-Upad...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
m (Text replacement - "हुयी " to "हुई ")
 
Line 40: Line 40:
उड़ रही नभ मण्डल मध्य थी॥
उड़ रही नभ मण्डल मध्य थी॥


अधिक और हुयी नभ लालिमा,
अधिक और हुई नभ लालिमा,
दश दिशा अनुरंजित हो गयी,
दश दिशा अनुरंजित हो गयी,
सकल पादप-पुंज हरीतिमा,
सकल पादप-पुंज हरीतिमा,

Latest revision as of 07:39, 7 November 2017

संध्या -अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'
कवि अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'
जन्म 15 अप्रैल, 1865
जन्म स्थान निज़ामाबाद, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 16 मार्च, 1947
मृत्यु स्थान निज़ामाबाद, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ 'प्रियप्रवास', 'वैदेही वनवास', 'पारिजात', 'हरिऔध सतसई'
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' की रचनाएँ

दिवस का अवसान समीप था,
गगन था कुछ लोहित हो चला,
तरू-शिखा पर थी अब राजती,
कमलिनी-कुल-वल्लभ की प्रभा॥

विपिन बीच विहंगम-वृंद का,
कल-निनाद विवर्द्धित था हुआ,
ध्वनिमयी-विविधा-विहगावली,
उड़ रही नभ मण्डल मध्य थी॥

अधिक और हुई नभ लालिमा,
दश दिशा अनुरंजित हो गयी,
सकल पादप-पुंज हरीतिमा,
अरूणिमा विनिमज्‍जि‍त सी हुयी॥

झलकने पुलिनो पर भी लगी,
गगन के तल की वह लालिमा,
सरित और सर के जल में पड़ी,
अरूणता अति ही रमणीय थी॥

अचल के शिखरों पर जा चढ़ी,
किरण पादप शीश विहारिणी,
तरणि बिंब तिरोहित हो चला,
गगन मंडल मध्य शनै: शनै:॥

ध्वनिमयी करके गिरि कंदरा,
कलित कानन केलि निकुंज को,
मुरली एक बजी इस काल ही,
तरणिजा तट राजित कुंज में॥

(यह अंश ‘प्रिय प्रवास’ से लिया गया है)


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख