वैदेही वनवास सप्तम सर्ग: Difference between revisions
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न त्याग पाये स्वाभाविकता॥71॥ | न त्याग पाये स्वाभाविकता॥71॥ | ||
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मैं अबला हूँ आत्मसुखों की। | मैं अबला हूँ आत्मसुखों की। | ||
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विश्व-प्रेम में परिणत करना॥75॥ | विश्व-प्रेम में परिणत करना॥75॥ | ||
दोहा | '''दोहा''' | ||
इतना सुन सौमित्रा की दूर हुई दुख-दाह। | इतना सुन सौमित्रा की दूर हुई दुख-दाह। |
Revision as of 10:57, 4 April 2013
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अवध पुरी आज सज्जिता है। |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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