प्रियप्रवास सप्तम सर्ग: Difference between revisions
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संक्षुब्ध हो सबल बहती थी जहाँ शोक-धारा॥5॥ | संक्षुब्ध हो सबल बहती थी जहाँ शोक-धारा॥5॥ | ||
यानों से हो | यानों से हो पृथक् तज के संग भी साथियों का। | ||
थोड़े लोगों सहित गृह की ओर वे आ रहे थे। | थोड़े लोगों सहित गृह की ओर वे आ रहे थे। | ||
विक्षिप्तों सा वदन उनका आज जो देख लेता। | विक्षिप्तों सा वदन उनका आज जो देख लेता। |
Latest revision as of 13:27, 1 August 2017
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ऐसा आया यक दिवस जो था महा मर्म्मभेदी। |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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