मंगलयान की सफलता: Difference between revisions
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Revision as of 10:39, 14 July 2017
मंगलयान की सफलता
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विवरण | 'मंगलयान' अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की महत्त्वाकांक्षी अन्तरिक्ष परियोजना है। इस परियोजना में मंगल ग्रह की परिक्रमा के लिये एक उपग्रह छोड़ा गया, जो 24 सितंबर, 2014 को ग्रह पर पहुँच गया। |
मिशन प्रकार | मंगल कक्षीयान |
संचालक | भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) |
कोस्पर आईडी | 2013-060A |
सैटकैट संख्या | 39370 |
निर्माता | इसरो उपग्रह केन्द्र |
प्रक्षेपण तिथि | 5 नवंबर, 2013 |
रॉकेट | ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसऍलवी) सी-25 |
प्रक्षेपण स्थल | सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र |
अन्य जानकारी | मंगलयान के जरिए भारत मंगल ग्रह पर जीवन के सूत्र तलाशने के साथ ही वहाँ के पर्यावरण की भी जाँच करना चाहता है। यह भी पता लगाया जायेगा कि लाल ग्रह पर मीथेन गैस मौजूद है या नहीं। |
अद्यतन | 13:45, 14 जुलाई 2017 (IST)
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24 सितंबर, 2014 को मंगल पर पहुँचने के साथ ही भारत विश्व में अपने प्रथम प्रयास में ही सफल होने वाला पहला देश तथा सोवियत रूस, नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के बाद दुनिया का चौथा देश बन गया। इसके अतिरिक्त ये मंगल पर भेजा गया सबसे सस्ता मिशन भी है। भारत एशिया का भी ऐसा करने वाला प्रथम पहला देश बन गया, क्योंकि इससे पहले चीन और जापान अपने मंगल अभियान में असफल रहे थे।
भारत का मंगलयान 67 करोड़ किलोमीटर का सफर पूरा कर पहली ही कोशिश में सीधे मंगल ग्रह की कक्षा में जा पहुंचा। दुनिया के तमाम देशों ने मंगल के करीब पहुंचने के लिए अब तक 51 मिशन छोड़े हैं। इनमें से कामयाब हुए सिर्फ 21, लेकिन पहली ही कोशिश में कामयाबी मिली सिर्फ भारत को और मंगल पर पहुंच गया 'मार्स ऑर्बिटर मिशन' यानी MOM। वह दिन बुधवार (24 सितंबर, 2014) का था, लेकिन चारों तरफ बात मंगल की हो रही थी। सुबह से ही समूचे देश की सांसें थमी थीं। निगाहें इसरो के मंगल मिशन पर थीं। करीब 7 बजकर 31 मिनट पर मंगल यान का इंजन चालू करने के बाद करीब 30 मिनट बहुत भारी थे। कुछ भी हो सकता था। सफलता या असफलता अगले चंद मिनटों पर ही टिकी थी। यान मंगल ग्रह के पीछे जा चुका था। रेडियो संपर्क टूट चुका था। कुछ पता नहीं था कि क्या हो रहा है। लेकिन 24 सितंबर, 2014 को 7 बजकर 58 मिनट पर यान मंगल की छाया से बाहर आ गया। चार मिनट बाद 8 बजकर 2 मिनट पर इसरो के सेंटर में खुशी की लहर दौड़ गई। मंगल मिशन कामयाब हो गया था।[1]
मंगल पर मंगलयान
अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के मावेन मिशन के मंगल की कक्षा में पहुंचने के ठीक 48 घंटे बाद ही भारत के मंगलयान ने भी लाल ग्रह की कक्षा में प्रवेश करने में सफलता पाई। मंगलयान पर सिर्फ 450 करोड़ रुपए खर्च हुए, जो नासा के मावेन मिशन के खर्च का 10वां हिस्सा ही है। मंगलयान ने कई और मामलों में भी सफलता के नए कीर्तमान स्थापित किए। भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो का मंगलयान 'मार्स ऑर्बिटर मिशन' मंगल ग्रह की अंडाकार कक्षा में कामयाबी के साथ स्थापित हो गया। ये भारत के स्पेस रिसर्च के इतिहास की कालजयी घटना है। इसरो ने इस सफलता से ऐसा इतिहास रचा है, जिसका कोई सानी नहीं है। मंगल मिशन कई मामले में समूची दुनिया के लिए नजीर बन गया। अब तक एशिया में कोई भी देश, चीन और जापान भी कोशिश करने के बावजूद मंगल अभियान में सफलता नहीं पा सके हैं। चीन का पहला मंगल मिशन यंगहाउ-1, 2011 में असफल हो गया था। 1998 में जापान का मंगल अभियान ईंधन ख़त्म होने के कारण नाकाम हो गया था। मंगल तक पहुंचने की अमेरिका की भी पहली 6 कोशिशें नाकाम हो गईं थीं। तमाम कोशिशों के बाद दुनिया में सिर्फ अमेरिका, रूस और यूरोपीय यूनियन ने अब तक मंगल पर कामयाब मिशन भेजे हैं। यानी भारत दुनिया का चौथा मुल्क है, जिसका झंडा मंगल पर शान से फहरा रहा है। ये मौका समूचे हिंदुस्तान के लिए गर्व करने का था।
अमरीकी स्पेस एजेंसी नासा ने ट्विटर पर भारतीय वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए लिखा- "मंगल पर पहुंचने के लिए इसरो को बधाई। मंगलयान लाल ग्रह के बारे में जानकारी हासिल करने वाले अभियान से जुड़ गया है।"
चीन ने कहा- "ये भारत के लिए गर्व की बात है और एशिया के लिए भी गर्व की बात है और अंतरिक्ष में खोज के नजरिए से मानवता के लिए मील का पत्थर है। इसके लिए हम भारत को बधाई देते हैं।"
इस यादगार दिन के गवाह देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बने। वह वैज्ञानिकों का हौसला बढ़ाने के लिए इसरो के सेंटर में मौजूद थे।
बुधवार, 24 सितंबर, 2014 की सुबह मंगलयान के 440 न्यूटन लिक्विड एपोजी मोटर यान को मंगल की कक्षा में ले जाने के लिए चालू हुए। लक्ष्य था कि यान की पहले की रफ्तार जो 22.57 कि.मी./ सेकेंड थी, वह कम करके 4.6 कि.मी./सेकेंड तक ले आई जाए। ये बहुत पेचीदा ऑपरेशन था, क्योंकि ये सावधानी रखनी थी कि यान इतना धीमा न हो जाए कि मंगल की सतह से टकरा जाए और इसकी रफ़्तार इतनी भी तेज न हो कि वह मंगल के गुरुत्वाकर्षण से बाहर अंतरिक्ष में खो जाए। इस बीच मंगलयान, मंगल ग्रह की छाया में यानी उसके पीछे जा चुका था। मंगल की वजह से यान का रेडियो लिंक भी खत्म हो गया। इसी दौरान यान का फॉरवर्ड रोटेशन शुरू हो गया। थोड़ी देर बाद यान के मीडियम गेन एंटीना से संपर्क हुआ। करीब 8 बजकर 2 मिनट पर ये संकेत मिलने शुरू हो गए कि मिशन कामयाब हो गया है। इसके साथ ही इसरो के सेंटर से लेकर देश के कोने-कोने तक खुशी की लहर दौड़ गई।
भारत ने लिक्विड मोटर इंजन की तकनीक से मंगलयान को मंगल की कक्षा में स्थापित किया था। आमतौर पर चांद तक पहुंचने के लिए इसी तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन इतने लम्बे मिशन पर भारत से पहले किसी भी देश ने लिक्विड मोटर इंजन के इस्तेमाल का जोखिम नहीं उठाया था। मंगल यान को 5 नवंबर, 2013 को सतीश धवन स्पेस सेंटर, श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश) से प्रक्षेपित किया गया था। 22 सितंबर, 2014 को मिशन का बड़ा मुकाम तब आया था, जब सिर्फ 4 सेकेंड के लिए मंगलयान के लिक्विड इंजन को चालू कर ये देखा गया कि मिशन पूर्व योजना के मुताबिक चल रहा है। इस सफलता के बाद ही बुधवार (24 सितंबर, 2014) की सुबह तय कार्यक्रम के मुताबिक मंगल यान को मंगल की कक्षा में स्थापित किया गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मंगल मिशन की पूरी कहानी (हिंदी) vigyanvishwa.in। अभिगमन तिथि: 13 जुलाई, 2017।