राजतरंगिणी: Difference between revisions
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*अपने ग्रंथ में कल्हण ने इस आदर्श को सदा ध्यान में रखा है इसलिए कश्मीर के ही नहीं, तत्काल भारतीय इतिहास के संबंध में भी राजतरंगिणी में बड़ी | *अपने ग्रंथ में कल्हण ने इस आदर्श को सदा ध्यान में रखा है इसलिए कश्मीर के ही नहीं, तत्काल भारतीय इतिहास के संबंध में भी राजतरंगिणी में बड़ी महत्त्वपूर्ण और प्रमाणिक सामग्री प्राप्त होती है। | ||
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*इस ग्रंथ से कश्मीर के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है। | *इस ग्रंथ से कश्मीर के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है। |
Revision as of 13:47, 4 January 2011
- 1148 से 1150 के बीच इस ग्रंथ की रचना कल्हण ने की ।
- कश्मीर के इतिहास पर आधारित इस ग्रंथ की रचना में कल्हण ने ग्यारह अन्य ग्रंथों का सहयोग लिया है जिसमें अब केवल नीलमत पुराण ही उपलब्ध है।
- यह ग्रंथ संस्कृत में ऐतिहासिक घटनाओं के क्रमबद्ध इतिहास लिखने का प्रथम प्रयास है।
- इसमें आदिकाल से लेकर 1151 ई. के आरम्भ तक के कश्मीर के प्रत्येक शासक के काल की घटनाओं क्रमानुसार विवरण दिया गया हैं
- यह कश्मीर का राजनीतिक उथलपुथल का काल था । आरंभिक भाग में यद्यपि पुराणों के ढंग का विवरण अधिक मिलता है।, परंतु बाद की अवधि का विवरण पूरी ऐतिहासिक ईमानदारी से दिया गया है।
- अपने ग्रंथ में कल्हण ने इस आदर्श को सदा ध्यान में रखा है इसलिए कश्मीर के ही नहीं, तत्काल भारतीय इतिहास के संबंध में भी राजतरंगिणी में बड़ी महत्त्वपूर्ण और प्रमाणिक सामग्री प्राप्त होती है।
- राजतंरगिनी के उद्वरण अधिकतर इतिहासकारों ने इस्तेमाल किये है ।
- इस ग्रंथ से कश्मीर के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है।
- कल्हण की राजतरगिणी मे कुल आठ तरंग एवं 8000 श्लोक हैं।
- पहले के तीन तरंगों में कश्मीर के प्राचीन इतिहास की जानकारी मिलती है।
- चौथे से लेकर छठवें तरंग में कार्कोट एवं उत्पल वंश के इतिहास का वर्णन है।
- अन्तिम सातवें एवं आठवें तरंग में लोहार वंश का इतिहास उल्लिखित है।
- इस पुस्तक में ऐतिहासिक घटनाओं का क्रमबद्ध उल्लेख है।
- कल्हण ने पक्षपातरहित होकर राजाओं के गुण एवं दोषों का उल्लेख किया है।
- पुस्तक के विषय के अन्तर्गत राजनीति के अतिरिक्त सदाचार एवं नैतिक शिक्षा पर भी प्रकाश डाला गया है।
- कल्हण ने अपने ग्रंथ राजतरंगिणी में संस्कृत भाषा का प्रयोग किया है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ