कोल्लूर: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''कोल्लूर''', मद्रास में कृष्णा नदी के दक्षिण में स्...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
Line 17: Line 17:
}}
}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
(पुस्तक ऐतिहासिक स्थानावली से) पेज नं0 239
(पुस्तक ऐतिहासिक स्थानावली से) पेज नं. 239
<references/>
<references/>
[[Category:नया पन्ना]]
[[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:तमिलनाडु]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Revision as of 13:31, 23 January 2011

कोल्लूर, मद्रास में कृष्णा नदी के दक्षिण में स्थित है। इस स्थान पर प्राचीन समय में हीरे की खानें थीं। एक किंवदन्ती के अनुसार संसार प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा यहीं की खान से 1656-57 ई. में प्राप्त हुआ था और मीरजुमला ने इसे सम्राट शाहजहाँ को भेंट में दिया था।

किंवदन्तियाँ

अन्य किंवदन्तियाँ ऐसी भी है, जिनके अनुसार कोहिनूर का इतिहास कहीं अधिक प्राचीन है। कहा जाता है कि पहली बार इस हीरे ने महाराज युधिष्ठर के मुकुट की शोभा बढ़ाई थी और कालक्रम से यह रत्न भारत के बड़े महाराजाओं तथा सम्राटों के पास रहा। अब यह हीरा, जो कि प्रारम्भ में 787½ कैरेट का था, कट-छट कर बहुत हल्का रह गया है और इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ के ताज में जड़ा हुआ है। यह भी सम्भव है कि, जो हीरा मीरजुमला ने शाहजहाँ को भेंट किया था, वह मुग़लेआज़म नामक हीरा था। यद्यपि कुछ लोग कोहिनूर और मुग़लेआज़म को एक ही मानते हैं।

हीरा 'होप'

कोल्लूर की खान से दूसरा जगत प्रसिद्ध हीरा होप नामक भी प्राप्त हुआ था, किन्तु कोहिनूर के विपरीत इसे बहुत ही भाग्यहीन समझा जाता है। 1642 में यह हीरा फ़्राँसीसी यात्री टवर्नियर के हाथ में पहुँचा। तब इसका भार 67 कैरेट था। टेवर्नियर ने भारत से लौटने पर इसे फ़्राँस के सम्राट चौदहवें लुई को भेंट में दिया। इसके पश्चात् यह फ़्राँस की रानी मेरी एनतिनोते के पास पहुँचा, जिसका फ़्राँस की राज्यक्रान्ति (1789 ई.) के काल में वध कर दिया गया। इसके पश्चात् यह होप परिवार के पास आया। तीन पीढ़ियों के बाद यह अन्य हाथों में जा चुका था।

अभिशप्त हीरा

लार्ड फ़्राँसिस होप, जिनके पास यह था, अपनी सारी सम्पत्ति खो बैठे और उनकी पत्नी की भी अचानक मृत्यु हो गई। उन्होंने इसे एक तुर्की व्यापारी के हाथों बेच दिया, जो बेचारा डूबकर मर गया। उसने पहले ही इसे तुर्की के सुल्तान अब्दुल हमीद को बेच दिया था। वे राज्य-च्युत हुए और कारागार में मरे। तत्पश्चात् यह अभागा हीरा एक अमरीकी परिवार में श्रीमती मेकलीन के यहाँ पहुँचा। उनका पुत्र एक मोटर दुर्घटना में मारा गया। श्रीमती मेकलीन ने इसे फिर भी न छोड़ा और एक ईसाई पुजारी से इसे अभिमंत्रित करवाया। किन्तु उनके पास भी यह न रह सका और थोड़े समय से आजकल एक अन्य अमरीकी परिवार के पास है। इस प्रकार भारत की कोल्लूर खान से यह नीली कान्ति वाला दीप्तिमान किन्तु अभिशप्त रत्न संसार में दूर-दूर तक जाकर अनेक हाथों में रहा है, किन्तु दुर्भाग्यवश जहाँ भी यह गया, वहाँ दुर्घटनाएँ इसकी सहेलियाँ बनी रही हैं।



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

(पुस्तक ऐतिहासिक स्थानावली से) पेज नं. 239